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________________ आचार्यश्री भ्रातृचन्द्रसूरिग्रन्थमाला पुस्तक - ३४. महामहोपाध्यायश्रीधर्मचंद्रगणिशिष्यवाचकवर श्रीकर्मचंद्रगणि कृताः संबंधा सोहचरित्रगर्भित अदारनात्राचोपाई. नात सा संशोधकः - श्री भ्रातृचंद्रसूरि शिष्य मुनिसागरचंद्रः ॥ ( दुहा:-) संगण श्री गौतम गणधर नमी, पामी मुगुरू पाऊ । अष्टाद गणतणी कथा कहुं धरिभाऊ ||१|| भविक लोक सहु सांभलो, सरस चरित छे एह । करम संयोग जे थयुं, कहुं यथारथ तेह ||२|| ( ढाल: - आदर जीव क्षमागुण आदर-ए देशीमां . ) गोयम राणहर पाय नमी, वलि समरी सरसति मायारे । जियो नातां कुबेरतातणां, कहुं प्रणमी श्रीगुरु पायारे ॥ १ ॥ मुगुण अविक तुम्हें सांभलों, कर्मतणी गति एहोरे । अति विसप्री/ जिणवर कही, तिहां नही कोई संदेहोरे ॥२॥ सुगुण भविक तुम्हें सांभलो ||आंकणी०॥ कुवेरदत्ताने जे थया, सगपण ते निजमुख गायारे । ते सदगुरु मुख सांभली, भविक लोक -मन भायारे ॥ सुगुण० ॥ ३ ॥ जंबुद्वीपें जांणीए, भरतक्षेत्र अभिरामोरे । अमरपुरी सम सोमती, तिहां नयरी मिथुला
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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