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________________ १३१ जिनपतिसूरिजी का स्वर्गवास संवत् १२७७ में हो जाने से दशा-वीशा का भेद इस से पहले ही प्रसिद्ध होता है । ५ बड़हरा शाखा से तो दशा-वीशा का कोई संबंध प्रतीत नहीं होता । लेखांक ४७६ में "बडहेरा" शब्द आया है और ओसवाल जाति में आज भी बडेर नाम का गोत्र है । सम्भव है बडहरा शब्द उसी से संबंधित हो । (६) पृष्ठ १८ में लेखांक २८३ में आये हुये " उदयसिंह " को जोधपुर का महाराणा लिख दिया गया है । पर वह ठीक नहीं है क्यों कि प्रथम तो “ महाराणा" विशेषण जोधपुरवालों के लिये नहीं लिखा जाता, उदयपुरवालों के लिये लिखा जाता है । दूसरी बात यह है कि प्रस्तुत लेख में उदयसिंह के आगे “ राउत" विशेषण लिखा हुआ है । इससे लेखोक्त उदयसिंह जोधपुर के राजा नहीं थे पर किसी गांव के ठाकुर थे, सिद्ध होता है । जोधपुर के राजा उदयसिंह का स्वर्गवास तो संवत् १६५२ की अषाढ सुदी १२ को या १५ को हो गया था । इसलिये भी लेख में लिखित उदयसिंह जोधपुर के राजा तो हो ही नहीं सकते । लेख का संवत् १८५९ होने में बाधा केवल धर्ममूर्तिसूरि के नाम ही है । पर मेरे ख्याल से लेख को ठीक से पढ़ा जाना चाहिये । लेख में “वाक्पत्राका नगर" नाम आता है पर उसे बाहड़मेर कैसे मान लिया गया ? उस के लिये तो संस्कृत में “वाग् भट मेरु” प्रयोग मिलता है । (७) पृष्ठ २० में लेखांक ३३३ के संवत् १५०७ के लेख का उल्लेख किया गया है पर प्रस्तुत लेख संग्रह में तो लेखांक ३३३ में संवत् १५०७ का कोई लेख नहीं है। सम्भव है उल्लेख करने में गलती रह गई हो पर मूल बात तो यह है कि उसके आधार से जूनागढ़ के राजाओं को जैन धर्मी सिद्ध करना उचित नहीं लगता । जैन धर्म के प्रति वे सहानुभूति रख सकते हैं पर इसी से वे जैन धर्मी थे यह मान लेना ठीक नहीं है । ७ (८) पृष्ठ २२ में “कोरड़ा" ग्राम को "करेड़ा" होना सम्भव है लिखा है पर वह ठीक नहीं है । “ कोरड़ा" नाम का अन्य कोई ग्राम ही होगा । इसी तरह बेट नगर और दीव बन्दर की एकता भी संदिग्ध ही है । “पत्तन सहानगरे" तो सम्भवतः पढने की भूल है यहां महानगरे होना चाहिये था । ८ ૫ દશા-વીશા ભેદ નિર્દેશ ઉત્કીર્ણ લેખને દાખલે શ્રી નાહટાજીએ રજૂ કર્યો હોત તે ઠીક થાત. “પ્રબંધચિન્તામણી” જેવા ઐતિહાસિક ગ્રંથમાં આ સંબંધને ઉલ્લેખ નથી તે શું સૂચવે છે? ૬ શ્રી અમરસાગરસૂરિ કત અંચલગચ્છની સંસ્કૃત પદાવલીમાં ઉદયસિંહ બાડમેરના રાજા હતો તે સ્પષ્ટ ઉલેખ હાઈને તેને કોઈ ગામનો ઠાકર કેમ માની શકાય ? - સં. ૧૫૦૭ ના શિલાલેખો મે માત્ર ભાગ જ આપે છે એટલે ઉલ્લેખ કરવામાં કોઈ ભૂલનો પ્રશ્ન જ નથી. મેં માત્ર વિદ્વાનોને મત રજૂ કર્યો છે, આ લેખને આધારે નિર્ણય કર્યો નથી. ૮ આવા અનુમાનો સિદ્ધ કરતા પહેલા આ અંગેના પ્રમાણે તપાસવા ઘટે છે.
SR No.032059
Book TitleAnchalgacchiya Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshva
PublisherAnantnath Maharaj Jain Derasar
Publication Year1964
Total Pages170
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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