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________________ किंचित वक्तव्य लेखक : श्री अगरचंदजी नाहटा ऐतिहासिक साधनों में शिलालेखों एवं मूर्ति-लेखों का सर्वाधिक महत्त्व है । जैन आचार्यों और श्रावकोंने मध्यकाल से लेकर अब तक हजारों मन्दिरों एवं प्रतिमाओं के लेख उत्कीर्णित करवाये इस से जैन इतिहास की अनेकों महत्त्वपूर्ण बातें प्रकाश में आने के साथ साथ भारतीय ग्राम-नगरों एवं शासको आदि के संबंध में भी बहुत से महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आते हैं । जैन प्रतिमा लेखों के कई संग्रह-ग्रन्थ भी गत् ५० वर्षों में प्रकाशित हुए हैं । उनका संक्षिप्त परिचय हमने अपने “बीकानेर जैन, लेख संग्रह" के प्रारम्भिक वक्तव्य में दिया था । अभी श्री “पार्श्व" सम्पादित "श्री अंचलगच्छीय लेख संग्रह" के फर्मे देखने को मिले । इस से विशेष हर्ष हुआ । क्यों कि श्री “ पार्श्व " जो अंचलगच्छ के इतिहास संबंधी एक बडा ग्रन्थ लिखने जा रहे हैं। उसकी प्रामाणिकता इस लेख संग्रह के द्वारा बढ़ सकेगी । प्रस्तुत संग्रह में ५१४ लेख हैं जो संवत् १२६३ से २०१९ तक के हैं । इसकी प्रस्तावना भी श्री “पार्श्व" ने अनेक ज्ञातव्य तथ्यों पर प्रकाश डालते हुये विस्तार से लिखी है । अभी अंचलगच्छ के और भी बहुत से ऐसे लेख हैं जिन का इस ग्रन्थ में समावेश नहीं हो सका है । प्रकाशित लेख संग्रहों में से भी अभी कुछ लेख इस संग्रह में समाविष्ट नहीं हो सके हैं। उदाहरणार्थ हमारे " बीकानेर जैन लेख संग्रह" में भी अंचलगच्छ के ४० लेख छपे हैं जो इस संग्रह में नहीं आ सके । श्री “पार्श्व" ने प्रस्तावना में यह स्पष्ट नहीं किया कि प्रस्तुत लेख संग्रह को तैयार करने में पूर्वप्रकाशित किन किन ग्रन्थों का उपयोग किया गया है और कितने लेख इस में ऐसे हैं जो इस से पहले प्रकाशित नहीं हुये थे । श्री “पार्श्व" ऐसा ही एक और लेख संग्रह भविष्य में प्रकाशित करने का सोच रहे हैं आशा है वह ग्रन्थ इस संग्रह से भी अधिक महत्त्वपूर्ण होगा । प्रस्तुत लेख संग्रह की प्रस्तावना में कुछ बातें ऐसी भी नजर आई जिनका संशोधन करना आवश्यक है । नीचे ऐसी ही कुछ बातों की चर्चा की जा रही है । (१) प्रस्तावना के पृष्ठ ८ में लेखांक ४३८ से ४४० में आये हुये “बीजामत" शब्दो को विधिपक्ष का अपभ्रंश मान लिया गया है पर वास्तव में विजयगच्छ या बीजामत, अंचलगच्छ या विधिपक्ष से सर्वथा भिन्न ही है । यदि लेख में आये आचार्यों के नामों की ओर ध्यान दिया जाता तो यह गलती नहीं होती । विजयगच्छ की श्रीपूज्य परम्परा आज भी कोटा में
SR No.032059
Book TitleAnchalgacchiya Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshva
PublisherAnantnath Maharaj Jain Derasar
Publication Year1964
Total Pages170
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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