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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास ३. अनिर्वेदः श्रियो मूलम् अनिर्वेदः परं सुखम् । अनिदो हि सततं सर्वार्थेषु प्रवर्तकः ।। रा० ५-१२-१० ४. सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः । अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥ रा० ३-३७-२ ५. उत्साहवन्तः पुरुषा नावसीदन्ति कर्मसु । रा० ४-१-१२२ वे मनुष्य को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग की शिक्षा देते हैं। अत्यधिक धन-लिप्सा मनुष्य के जीवन को नष्ट कर देती है, यह कैकेयो और वालि के जीवन से स्पष्ट है। इसी प्रकार अत्यधिक कामुकता भी मनुष्य को नष्ट कर देती है, यह दशरथ और रावण के जीवन से स्पष्ट है । वाल्मीकि ने जीवन की पवित्रता पर बहुत बल दिया है । आचार ही मनुष्य जीवन का सर्वोत्तम गुण है। कूलीनमकलीनं वा वीरं पुरुषमानिनम् । चारित्रमेव व्याख्याति शुचिं वा यदि वाऽशुचिम् ।। रामायण १-१०६-४ विवाह एक पवित्र बन्धन है, इसको पवित्रता सिद्ध की गई है। सबसे मुख्य रूप से यह सिद्ध किया गया है कि कर्तव्य-निष्ठा सर्वोत्तम गुण है और यही मनुष्य को गौरव से युक्त करता है। रामायण प्राचीन भारत की सामाजिक अवस्था का विशद वर्णन करता है । अयोध्या और लंका दोनों स्थानों पर प्रजातन्त्र राज्य की व्यवस्था थी। राजा उसका अध्यक्ष होता था। राज्य की नीति का निर्धारण अधिकतर प्रजा की इच्छा के अनुसार होता था। व्यापार में अनुचित प्रतिस्पर्धा तथा सबलों द्वारा निर्बलों के उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रयत्न किया जाता था । वास्तुविद्या सम्बन्धी कौशल का उल्लेख मिलता है। निर्माण कार्य के लिए जिन वृक्षों को काटा जाता था, उन्हें यन्त्रों की सहायता से हटाया जाता था । अयोध्या के मनुष्य धार्मिक विधियों का अनुष्ठान करते थे । राक्षस उनकी इन विधियों में विघ्न डालते थे । आवश्यकता पड़ने पर वे ही
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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