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________________ उपसंहार ४१७ भी उसका अभ्यास किया जाता था । भारतीय विचारकों की दृष्टि में आत्मा का महत्त्व और उसकी पवित्रता की ओर ध्यान सदा रहा है । भौतिक उन्नति आत्मिक उन्नति के सहायक के रूप में स्वीकृत थी । अतएव अहिंसा और सहनशीलता के अभ्यास पर विशेष बल दिया जाता था । जीवन भर के परीक्षणों के पश्चात् भारतीयों ने कर्म-सिद्धान्त और पुनर्जन्मवाद में आस्था रक्खी और इनका सर्वाङ्गपूर्ण अव्ययन किया । आशावाद की दृढ़ भावना ने भारतीयों को यह शक्ति प्रदान की है कि वे जीवन की सभी प्रकार की कठिनाइयों को सहन करने का साहस रखते हैं । यह भारतवर्ष की प्रमुख विशेषता है । यह शक्ति हिन्दू धर्म और उसके सिद्धान्तों को अपने व्यवहार में लाने का प्रभाव है । भारतवर्ष में धर्म और दर्शन अविच्छिन्न रूप से साथ रहे हैं । भारतीय दर्शन जिन तथ्यों का वर्णन करते हैं, उनको ही ग्राह्य समझ कर भारतीय उनको व्यवहार में लाते हैं । विश्व - साहित्य भारतीय साहित्य का बहुत ऋणी है । शिक्षा, व्याकरण और संगीत के ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि जिस समय विश्व के अन्य समस्त देश अन्धकार के गर्त में लीन थे, उस समय भारतवर्ष के ऋषि ध्वनि, ध्वनियों के उच्चारणस्थान और उनके विभेदों को बहुत गम्भीरता के साथ जानते थे । अतएव मैकडानल ने लिखा है कि “भारत में संस्कृत भाषा के वैयाकरण ही विश्व के सर्वप्रथम विद्वान् हैं, जिन्होंने शब्दों की निष्पत्ति पर ध्यान दिया, धातु और प्रत्यय के अन्तर को समझा, प्रत्ययों का कार्य निश्चित किया और एक ऐसा विशुद्ध और सर्वा पूर्ण व्याकरण - शास्त्र उपस्थित किया, जो कि विश्व में अनुपम है ।"" आयुर्वेद और गणित ज्योतिष के क्षेत्र में भी प्रशंसनीय उन्नति की है । दार्शनिक विवेचन और विश्लेषण में जो सफलता प्राप्त की है, उससे भारतवर्ष सदा गौरवान्वित रहेगा | आतंकवाद, जन्मसिद्ध राजत्व और प्रजातन्त्रवाद के गुण-दोष का १. Macdonell : India's Past पृष्ठ १३६. सं० सा० इ०-२७
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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