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________________ अध्याय ३५ आस्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन वेदान्त दर्शन वेदान्त दर्शन उपनिषदों पर आश्रित है । उपनिषद् वैदिक साहित्य के ज्ञानकाण्ड के प्रतिनिधि हैं । अतएव इसको वेदान्त या उत्तरमीमांसा कहते हैं । इस दर्शन में आत्मा के स्वरूप का वर्णन होता है तथा उसका जीवात्मा और प्रकृति से क्या सम्बन्ध है, इसका भी विवेचन किया जाता है । अतएव इस दर्शन को ब्रह्ममीमांसा भी कहते हैं । विद्यमान रहती है । उपनिषदों में जो वाक्य आते हैं, वे अनेक प्रकार के हैं । उनमें से कुछ ऐसे वाक्य हैं, जिनमें ईश्वर, जीव और प्रकृति को भिन्न माना गया है और उनकी विशेषताओं का पृथक् निरूपण किया गया है ऐसे वाक्यों को 'भेदश्रुति' कहते हैं । कुछ ऐसे वाक्य हैं, जिनमें यह वर्णन किया गया है कि ऊपर से पृथक् दिखाई देने वाले तत्त्व में भी आन्तरिक एकता इस प्रकार अनेकत्व में भी एकत्व रहता है । ऐसे वाक्यों को इनके अतिरिक्त कुछ और वाक्य हैं, जिनको 'घटकश्रुति' वाक्य हैं, जो भेदश्रुति और प्रभेदश्रुति में पारस्परिक सम्बन्ध की स्थापना करते हैं । इससे ज्ञात होता है कि उपनिषदों में किसी एक सिद्धान्त का समन्वित रूप से प्रतिपादन नहीं किया गया है । अतएव वेदान्तदर्शन के कई मत हैं और सभी उपनिषदों की शिक्षाओंों पर आश्रित हैं । भेदश्रुति कहते हैं कहते हैं । ये ऐसे इस दर्शन के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन वेदान्तसूत्रों में है । इनको ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं । ये चार अध्यायों में हैं । यह माना जाता है कि संकर्षणकाण्ड के सूत्र चार अध्यायों में विद्यमान थे । ये सूत्र मीमांसा - सूत्रों के अन्त में निबद्ध थे और उनके बाद ब्रह्मसूत्र थे । संकर्षणकाण्ड में उन देवताओं का वर्णन था, 1
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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