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________________ ३७४ संस्कृत साहित्य का इतिहास वैशेषिकों ने परमाणुवाद के सिद्धान्त की स्थापना की और नैयायिकों ने उसे विकसित किया । इस सिद्धान्त के अनुसार चक्षु से दृष्टिगोचर होने वाले सूक्ष्मतम अणु के ? भाग को परमाणु कहते हैं। संसार की प्रत्येक वस्तुएं इन परमाणुओं के सम्मिश्रण से ही बनती हैं । ये परमाणु असंख्य हैं। प्रत्येक तत्त्व (भूत) के परमाणु विभिन्न होते हैं और उनका मिश्रण भी विभिन्न प्रकार से होता है । प्रत्येक वस्तु के गुण अपने आधारभूत परमाणों के गुणों पर ही निर्भर होते हैं । परमाणुषों में आन्तरिक उष्णता (पाक) होती है, अतः उनमें परिवर्तन होता है । वैशेषिक दर्शन का मत है कि जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो वह वस्तु विश्लेषण की अवस्था को प्राप्त करके क्रमगः परमाणु की अवस्था को प्राप्त होती है । वे ही परमाणु अपने गुणों में अन्तर करके अन्य वस्तु को उत्पन्न करते हैं । इस दर्शन के अनुसार परमाणु को पील कहते हैं और उष्णता का प्रभाव परमाणु पर होता है । अतः इस दर्शन के इस सिद्धान्त को 'पोलुपाकवाद' कहते हैं । नैयायिकों का मत है कि वस्तु को गर्म करने पर समस्त वस्तु विश्लिष्ट नहीं होती है, अपितु गर्मो का प्रभाव अदश्य रूप से परमाणुगों पर होता है और उनमें परिवर्तन होता है । परमाणुनों पर जो गर्मी का प्रभाव होता है, वह संपूर्ण वस्तु (पिठर) में दृष्टिगोचर होता है । इस सिद्धान्त के अनुसार गर्मो का प्रभाव परमाणुओं और संपूर्ण वस्तु दोनों पर होता है, अतः इस सिद्धान्त को 'पिठरपाकवाद' कहते है। उत्पन्न हई वस्तुओं के विषय में इस दर्शन का मत है कि उनमें नवीन प्रयत्न होता है । अतः इस सिद्धान्त को 'प्रारम्भवाद' कहते हैं। वैशेषिकसूत्र, न्यायसूत्रों से प्राचीन हैं । वैशेषिक सूत्र सुव्यवस्थित रूप ने बद्ध नहीं है । इससे ज्ञात होता है कि विधिपूर्वक संकलन का यह प्रारम्भिक प्रयत्न है । इसकी शली प्राचीन है । इसमें बौद्धधर्म का उल्लेख नहीं है । अतः इसका समय ५०० ई० पू० से पूर्व मानना चाहिए । न्यायसूत्रों में वैशेषिक सत्रों में वणित विषय का ही संशोधित रूप में वर्णन है । इसमें सत्र सुव्यवस्थित रूप में हैं । इन सूत्रों से ज्ञात होता है कि वैशेषिक सूत्रों पर बौद्धा और जैनियों ने जो आक्रमण किए थे, उनका इसमें उत्तर दिया गया है और
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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