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________________ ज्योतिष ३२५ ६१ ई० में एक यवनेश्वर ने अपने कथनों को संस्कृत में अनूदित किया। यही यवन-जातक के नाम से प्रचलित हुआ । भट्टोत्पल (लगभग १००० ई०) के कथनानुसार उस ग्रन्थ में दिया हुआ संवत् शक संवत् है । यदि इस साक्ष्य को प्रामाणिक माना जाय तो इस ग्रन्थ का समय १६६ ई० होता है। यवनजातक नाम का एक दूसरा ग्रन्थ १६१ वें वर्ष (२६८ ई०) में स्फूजिध्वज के द्वारा लिखा गया है । इसमें ४ सहस्र श्लोक हैं। यवनजातक नाम के अन्य दो ग्रन्थ और हैं । इनके लेखक का नाम और समय अज्ञात है । इसमें से एक का नाम वृद्धयवनजातक है। इसमें ८ सहस्र श्लोक हैं। कुछ विद्वान् दूसरे ग्रन्थ का लेखक मीनराज को यवनाचार्य मानते हैं, जैसा कि इन ग्रन्थों के नामों से ज्ञात होता है। ये यवनजातक यूनानी उद्भव वाली फलित ज्योतिष को समस्यायों का विवेचन करते हैं। वराहमिहिर ने ज्योतिष को तीन भागों में विभक्त किया है---(१) तन्त्र । इसमें गणित ज्योतिष और गणित का विवेचन होता है। (२) होरा । इसमें जन्मकुण्डलो का वर्णन होता है । (३) संहिता । इसमें फलित ज्योतिष का वर्णन होता है । उसने बृहत्संहिता ग्रन्थ लिखा है। इसमें १०६ अध्याय हैं । इस ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि वह अनेक विषयों का विद्वान् था। इसमें उसने ग्रहों और नक्षत्रों का वर्णन किया है, उनकी गति तथा उनका मनुष्य के जीवन पर प्रभाव का भी वर्णन किया है। इन विषयों के अतिरिक्त उसने इस ग्रन्थ में इन विषयों का भी वर्णन किया है -भारतीय भूगोल का संक्षिप्त वर्णन, ऋतु-चिह्न प्रादि, पुरुष स्त्री और पशु-पक्षियों के विशेष चिह्न तथा रेखाएँ, शकुन-वर्णन और विवाह का महत्त्व । उसने कामशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में भी अपनी योग्यता प्रदर्शित की है। उसने वहद्विवाहफल और स्वल्पविवाहफल नामक दो ग्रन्थों में विवाह सम्बन्धी प्रश्नों पर विचार किया है। ये दोनों ग्रन्थ एक ही ग्रन्थ के विशाल और लघु रूप हैं । उसने योगयात्रा ग्रन्थ में अन्य राजाओं के साथ युद्ध का वर्णन किया है । उसके बहज्जातक और लघुजातक ग्रन्थ फलितज्योतिष के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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