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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास ग्रन्थों के तुल्य है, परन्तु इसमें वैदिक छन्दों का विवेचन नहीं है। जिस प्रकार पाणिनि ने संक्षेप के लिए प्रत्याहारों का उपयोग किया है, उसी प्रकार पिंगल ने संक्षेप के लिए छन्दों के लक्षण में गणों का उपयोग किया है। ये ग्रन्थ श्रेण्यकालीन छन्दों का वर्णन नहीं करते। प्राकृतछन्दःसूत्र का लेखक भी वही माना जाता है । वह कालिदास से बहुत पूर्व हुआ होगा । वृत्तरत्नावली और श्रुतबोध ये दोनों कालिदास की रचनाएँ मानी जाती हैं । किन्तु यह गलत है। दोनों में श्रेण्यकाल के छन्दों का विवेचन है । जनाश्रय ( लगभग ८०० ई० ) ने छन्दोविचिति ग्रन्थ लिखा है। उसने उसमें छन्दों के उदाहरण अपने पूर्ववर्ती लेखकों के ग्रन्थों से दिये हैं। वराहमिहिर ( ५८७ ई० ) ने अपनो वृहत्संहिता में ग्रहों आदि की गनि का वर्णन किया है । साथ ही उसने छन्दों के विषय में एक अध्याय दिया है । क्षेमेन्द्र ( १०५० ई०. ) ने अपने सुवृत्ततिलक में अपने पूर्ववर्ती लेखकों के ग्रन्थों का उल्लेख किया है। हेमचन्द्र (१०८८-११७२ ई०) ने छन्द के विषय में छन्दोऽनुशासन ग्रन्थ लिखा है। केदारभट्ट ने वृत्तरत्नाकर बन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ जब से लिखा गया है, तभी से बहुत प्रसिद्ध है गया है। केदारभट्ट १५वीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ था। प्राकृतछन्दःसूत्र में प्राकृत भाषा के छन्दों का वर्णन किया गया है। कुछ लोगों क मत है कि इस ग्रन्थ का लेखक पिंगल है। किन्तु यह मत ठीक नहीं जान पड़ता। इसका लेखक अज्ञात है। ऐसा निरूपण किया जाता है कि वह १५वीं शताब्दी के पूर्व लगभग १४२५ ई० में रहा होगा। छन्द विषय पर अन्य ग्रन्थ ये हैं--गंगादास (१५वीं शताब्दी ई० ) की छन्दोमं करी, दामोदर मिश्र ( १६वीं शताब्दी ई० ) का वाणी-भूषण और दुःख भंजन कवि का वाग्वल्लभ । श्रेण्यकाल के छन्दों में ये छन्द अधिक प्रचलित है-- मन्दात्रता, वसन्ततिलक, शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, अनुष्टुभ्, आर्या और उपजाति ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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