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________________ ३१२ संस्कृत साहित्य का इतिहास प्रचार हुआ और वहाँ १३वीं शताब्दी में एक बौद्धपुरोहित काश्यप ने बालावबोव नामक ग्रन्थ लिखकर इस शाखा को नवीन रूप दिया । __ जैनेन्द्र शाखा के अनुयायी अपनो शाखा की उत्पत्ति जिन महावीर से मानते हैं। उनका कथन है कि जिन महावोर ने इन्द्र के प्रश्नों के उत्तर दिये थे । इन उत्तरों के आधार पर ही यह नवीन शाखा प्रचलित हुई थी। यह शाखा जिन और इन्द्र के प्रश्नोत्तर से चलो, अतः इसका नाम दोनों के नाम से जिनेन्द्र शाखा के रूप में प्रचलित हुआ । इसका मूल ग्रन्थ दा रूपों में प्राप्त हुआ है । एक में ७०० सूत्र हैं और दूसरे में ३०० सूत्र हैं । इसकी पारिभाषिक शब्दावली पाणिनि की पारिभाषिक शब्दावली से अधिक कठिन है, अतएव यह व्याकरण पाणिनोय व्याकरण से अधिक कठिन है । देवनन्दी इन सूत्रों का रचयिता माना जाता है । इसकी उपाधि पूज्यपाद श्री। यह और जिनेन्द्र-बुद्धि एक हो व्यक्ति माने जाते हैं । इन सूत्रों पर केवल दो टीकाएँ लिखी गई हैं। एक अभयनन्दी (७५० ई०) की और दूसरी सोमदेव (११वीं शताब्दी ई०) की । इसके अतिरिक्त इस शाखा पर और कोई ग्रन्थ नहीं लिखा गया है। एक नवीन ग्रन्थ पंचवस्तु इन सूत्रों का नवीन रूप है। इसका समय और लेखक अज्ञात है । यह आधुनिक रचना है । यह शाखा दिगम्बर जैनों में प्रचलित थी। __एक श्वेताम्बर जैन शाकटायन ने हवीं शताब्दी ई० में शाकटायन शाखा की स्थापना को। शाकटायन ने शब्दानुशासन नामक ग्रन्थ लिखा है और उस पर अमोघवत्ति नामक टीका भी स्वयं लिखी है। यह ग्रन्थ पाणिनि चान्द्र और जैनेन्द्र व्याकरणों के अनुकरण पर लिखा गया है । इसमें चार अध्याय हैं और ३२०० सूत्र है । इसकी पद्धति सिद्धान्तकौमदी के तुल्य है। इस पद्धति को ११वीं शताब्दी में दयापाल ने नवीन रूप दिया और रूपसिद्ध नामक ग्रन्थ लिखा । १४वीं शताब्दी में अभयचन्द्र ने प्रक्रियासंग्रह ग्रन्थ लिखकर इसको नवीन रूप में प्रस्तुत किया है । धारानरेश भोज (१००५-१०५४ ई०) ने सरस्वतीकण्ठाभरण नामक ग्रन्थ की रचना की है । इसमें ६००० सुत्र हैं। पाणिनि की अष्टाध्यायी के प्रतिम्प
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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