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________________ अध्याय २४ इतिहास संस्कृत में साहित्य के सभी विषयों का विशद विवेचन हुआ है, परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि विषय के रूप में इतिहास का विवेचन नहीं हुआ है । पाश्चात्य विद्वानों ने इसका कारण यह बताया है कि भारतीय विचारधारा इतिहास लिखने के विरुद्ध रही है । उनका कथन है कि भारतीय भाग्यवाद, कर्म-सिद्धान्त, दैनिक जीवन में दैवी हस्तक्षेप और संसार की अनित्यता में विश्वास रखते हैं। बद्धमूल ये विश्वास उनकी समकालीन घटनाओं की ओर ध्यान देने से रोकते हैं। मनुष्य स्वतन्त्र नहीं है कि वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करे या दूसरों का पथ-प्रदर्शन करे। वह कर्मफल आदि के हाथ में एक प्रकार से साधन है । अतएव उसकी उन्नति या अवनति उसके पुण्य या पाप का फल है, इसीलिए उसका उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही यह निश्चय है कि ससार की प्रत्येक वस्तु विनश्वर है, अतः सांसारिक घटनामों का उल्लेख करने से कोई वास्तविक लाभ नहीं होगा। इसके अतिरिक्त भारतीयों को प्राचीन काल के वीर महापुरुष राम, कृष्ण, अर्जुन, भीम, कर्ण आदि बहुत समय का व्यवधान होने पर भी महापुरुष ज्ञात होते हैं । उनकी तुलना में समकालीन वीर नहीं के बराबर प्रतीत होते हैं। अतएव उन्होंने समकालीन वीरों तथा उनके कार्यों की ओर ध्यान नहीं दिया और उनको अपने ग्रन्थों में स्थान नहीं दिया। इस प्रकार के कितने विद्वान प्रत्येक समय में रहे हैं, जिन्होंने प्राचीन वीरों का गुणानुवाद किया है और उनको प्रशंसा में काव्य बनाये हैं तथा प्राचीन कवियों की कृ यो की टीका प्रादि की है। पाश्चात्य विद्व नों के अनुसार कश्मीरी कवि कल्हण भी पूर्णतया इतिहास का विद्वान् नही था । उसका कार्य सं० सा० इ.--१८
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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