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________________ कालिदास के परवर्ती नाटककार २७१. पर्दे के पीछे खड़े हुए व्यक्ति बोलते हैं । यह वर्तमान सिनेमों का प्रारम्भिक रूप समझना चाहिए। प्राचीन नाटकों में इस प्रकार के नाटकों के अभाव से ज्ञात होता है कि इस प्रकार के नाटक बाद की रचना हैं । इस प्रकार के नाटक भारतवर्ष में कब से प्रचलित हुए यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है । अभिनव गुप्त (१००० ई०) की अभिनवभारती में इस प्रकार के नाटकों का अस्पष्ट उल्लेख है। मेघप्रभाचार्य के धर्माभ्युदय नाटक की प्रस्तावना में इस नाटक को छायानाटक कहा गया है । इस ग्रन्थ का समय अज्ञात है। सुभट का दूतांगद नाटक १२४३ ई० में रंगमंच पर दिखाया गया था। इसमें वर्णन किया गया है कि अंगद दूत के रूप में रावण के पास जाता है। सुभट १२०० ई० के लगभग जीवित रहा होगा । व्यास श्रीरामदेव ने तीन छाया नाटक लिखे हैं--सुभद्रापरिणय, रामाभ्युदय और पाण्डवाभ्युदय । वह १५वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ था । अन्य छाया नाटक अगण्य से हैं। संस्कृत नाटकों का ह्रास संस्कृत नाटकों के ह्रास के कई कारण हैं । रामायण और महाभारत के प्रभाव ने प्रतिभाशाली नाटककारों को यह अवसर नहीं दिया कि वे अपनी इच्छा के अनुसार नाटकों की कथा रखते । इसका प्रभाव यह हुआ कि कई नाटक एक ही नाम के लिखे गये और कई नाटकों को कथा प्रायः एक ही रही। ज्यों-ज्यों नाटकों की संख्या बढ़ती गयी, त्यों-त्यों नाट्यशास्त्रीय नियम और कठोर होते गये । नाटककारों ने यह कठिनाई अनुभव की कि सभी नाटकीय नियमों का पालन करना बहुत कठिन है, अतः वे एक प्रकार के ही नाटक बनाते रहे । कवियों और नाटककारों ने अपनी भाषा में अप्रचलित शब्दों और भावों को स्थान देना प्रारम्भ किया । परिणामस्वरूप उनकी भाषा कृत्रिम हो गयो और जनसामान्य की समझ में नहीं आती थी। बाद के नाटकों में जो कृत्रिमता दृष्टिगोचर होती है, उसका उत्तरदायित्व उस सुशिक्षित जनता पर है जो कि इस प्रकार की कृत्रिम शैली और भावाभि
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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