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________________ २४० संस्कृत साहित्य का इतिहास ___मृच्छकटिक के प्रथम चार अङ्गों की कथा वही है जो भास के चारुदत्त की है। दूसरे दिन वसन्तसेना ने चारुदत्त के घर पर रात बिताई । उसके दूसरे दिन प्रातःकाल चारुदत्त नगर के उपवन में गया और उसने वसन्तसेना से कहा कि वह उसे वहाँ मिले । चारुदत्त के शिशु रोहसेन ने दाई से कहा कि वह मिट्टी की गाड़ी के स्थान पर खिलौने वाली गाड़ी खेलने के लिए दे । वसन्तसेना को उस शिश पर दया प्राई और उसने उस शिशु की मिट्टी को गाड़ी अपने आभूषणों और रत्नों से भर दी और उसको प्रसन्न कर दिया । उसके घर के आगे एक गाड़ी रुकी, उसने भ्रमवश यह समझा कि यह गाड़ी चारुदत्त ने उसके लिए भेजी है, वह उस पर चढ़कर उद्यान को चल दी । वस्तुतः वह गाड़ी वहाँ के राजा के साले संस्थानक की थी। वह एक दुराचारी व्यक्ति था। वसन्त सेना उससे प्रेम नहीं करना चाहती थी, परन्तु वह उसको फंसाना चाहता था । वसन्तसेना उस गाड़ी में उपवन में वहाँ पहुँची जहाँ संस्थनाक उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वहाँ वसन्तसेना ने उससे प्रेम करने से निषेध किया । इस पर उसने क्रुद्ध होकर उसका गला दबा दिया और वह निश्चेप्ट होकर गिर गई। उधर न्यायालय में जाकर उस संस्थानक ने चारुदत्त के विरुद्ध अभियोग चलाया कि उसने आभूषणों के लोभ में वसन्तसेना का वध कर दिया है । दूसरी ओर चारुदत्त ने वसन्तसेना के लिए जो गाड़ी भेजी थी, उस पर आर्यक नाम का एक राजनीतिक बन्दी कारागृह से भागकर आश्रय लेता है। चारुदत्त ने उसको आश्रय दिया। आर्यक ने वर्तमान राजा को पदच्यत करने के लिए शर्विलक आदि का साथ दिया । उपवन में वसन्तसेना को न पाकर निराश होकर वह घर आया । वहाँ आने पर उसे न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश मिला और वह वहाँ गया। जब अभियोग चल रहा था, तब चारुदत्त का एक मित्र विदूषक चारुदत की स्त्री के आदेशानुसार वसन्तसेना के आभूषण उसको लौटाने जा रहा था । उसने मार्ग में जब चारुदत्त के ऊपर अभियोग की बात सुनी तो वह आभषणों के सहित न्यायालय में पहुँचा । चारुदत्त के पास निरपराध होने का कोई
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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