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________________ २३६ संस्कृत साहित्य का इतिहास दण्डी ने अपनी पुस्तक अवन्तिसुन्दरीकथा में लिखा है-- लिप्ता मधुद्रवेणासन् यस्य निविवशा गिरः । तेनेदं वर्त्म वैदर्भ कालिदासेन शोधितम् ।। प्रस्तावना, श्लोक १५ जयन्त ने कवि कालिदास की सूक्तियों के विषय में अपनी न्यायमंजरी में लिखा है-- अमतेनेव संसिक्ता: चन्दनेनेव चचिताः । चन्द्रांशुभिरिवोद्धृष्टाः कालिदासस्य सूक्तयः ।। उसका नाम शाकुन्तल नाटक के साथ बहुत आदर के साथ लिया जाता है।' शाकुन्तल नाटक के विषय में कहा गया है कि "यह विशद और मनोरम है । इसमें अोज के साथ ही मनोज्ञता है और संक्षेप के साथ ही भाव"प्रांजलता है।" ___ उसके ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि वह पूर्ण शिवभक्त था और हिन्दुओं के देवत्रय में एकता को मानता था। वह उपनिषदों और भगवद्गीता की शिक्षाओं पर पूर्ण विश्वास करता था । वह सांख्य, योग और वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों से पूर्णतया परिचित था । उसने संभवतः एक ग्रन्थ कुन्तेश्वरदौत्य लिखा था, क्षेमेन्द्र (१०५० ई०) ने उससे उद्धरण दिया है, परन्तु वह ग्रन्थ नष्ट हो गया है । वह कवियों, गीतिकाव्यकारों और नाटककारों में सर्वश्रेष्ठ है । १. कालिदासस्य सर्वस्वमभिज्ञानशकुन्तलम् । तत्रापि चतुर्थोऽङकः यत्र याति शकुन्तला ।। २. C. E. M. Joad : The History of Indian Civilization. पृष्ट ६७ । ३. कुमारसंभव, सर्ग ६, श्लोक ४४ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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