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________________ संस्कृत नाटक, उनकी उत्पत्ति, उनकी विशेषताएँ और उनके भेद २११ उक्त कथाओं से अन्तर है । विशाखदत्त के मुद्राराक्षस की कथा राजनीतिक विषय पर आधारित है । ___ इन नाटकों में कथानक के बाद महत्त्व की दृष्टि से पात्रों का स्थान आता है । पात्रों के पुरुष और स्त्री रूप में विभाजन से नाटकों में वास्तविकता प्रा जाती है । "इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि भारतीय नाटककारों ने लगभग १३ सौ वर्ष पूर्व स्त्रियों को स्त्रीपात्रों का अभिनय करने की स्वीकृति देकर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया है । जिसको अब पाश्चात्य नाटककारों ने अपनाया है।"१ ये पात्र ही संस्कृत का प्रयोग करें और ये पात्र प्राकृत का प्रयोग करें, इस नियन्त्रण से ज्ञात होता है कि संस्कृत नाटक कितने अधिक वास्तविक जीवन से सम्बद्ध थे। उस समय जिस प्रकार भाषा का प्रयोग होता था, उसी प्रकार नाटकों में भी भाषा का प्रयोग है । पुरुष पात्रों में नायक, प्रतिनायक, विदूषक, भृत्य आदि उल्लेखनीय हैं। संस्कृत नाटकों में नायक को दबाकर प्रतिनायक विजयी नहीं हो सकता है । नाटककारों का पहले से निर्णय कि नायक का पतन नहीं होना चाहिए और जैसे भी हो उसकी विजय-पताका फहरानी चाहिए, इस निश्चय के कारण पात्रों का चरित्र-चित्रण अच्छा नहीं हो पाया है। यही अवस्था स्त्रीपात्रों की भी है । नायक चार प्रकार के होते हैं--धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरशान्त और धीरललित । प्रेमी की दृष्टि से नायक चार प्रकार के होते हैं - अनुकूल, दक्षिण, धष्ट और शठ । नाटक के अनुसार नायक किसी एक विशेष प्रकार का होना चाहिए । विदूषक कोई ब्राह्मण व्यक्ति ही होता है । कालिदास के मालविकाग्निमित्र और शूद्रक के मच्छकटिक के अतिरिक्त सभी नाटकों में विदूषक एक मूर्ख व्यक्ति है । वह प्रेमी और प्रेमिका का प्रणय-सम्बन्ध कराने में सहयोग देता है और अन्य सभी पात्रों के लिए हास्य का पात्र होता है । स्त्रीपात्रों में महारानी का स्थान ऊँचा होता है । अधिकांश नाटकों में १. C. E. M. Joad : The History of Indian Civilisation. पृष्ठ ६५।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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