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________________ अध्याय २१ संस्कृत नाटक, उनकी उत्पत्ति, उनकी विशेषताएँ और उनके भेद संस्कृत नाटकों की उत्पत्ति भारतीय परम्परा संस्कृत नाटकों की उत्पत्ति दैवी मानती है । देवताओं ने ब्रह्मा से प्रार्थना की कि वह ऐसी वस्तु उत्पन्न करें जो जीवमात्र के आँखों और कानों को तृप्त कर सके। उनकी इस प्रार्थना पर ब्रह्मा ने नाट्यवेद की सष्टि की । ब्रह्मा ने इसके लिए ऋग्वेद से पाठय लिया, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रसों को लिया । शिव और पार्वती ने इसके लिए क्रमशः ताण्डव और लास्य दिये । विष्णु ने इसके लिए चार नाट्य-संबंधी रीतियाँ दीं। इन रीतियों के नाम हैं - कैशिकी, सात्वती, आरभटी और भारती । भरत मुनि को अधिकार दिया गया कि वह इसको संसार में प्रकट करें । भरत मुनि ने तदनुसार ही कार्य किया । इस नाट्य वेद को पंचम वेद कहा गया। ___ इस दैवी उत्पत्ति के अतिरिक्त नाटकों की उत्पत्ति धार्मिक और लौकिक आधार पर भी मानी जा सकती है । बहुत प्राचीन समय से संगीत, नृत्य और नाट्य इन तीनों का पारस्परिक सम्बन्ध रहा है । संगीत का प्रादुर्भाव सामवेद के समय से हुआ है । नृत्य और अभिनय का प्रादुर्भाव यज्ञों के क्रिया-कलाप से हुआ है । इन कार्यों का सम्बन्ध यजुर्वेद से है । संवाद का तत्त्व ऋग्वेद के संवादों से लिया गया है, जैसे-यम-यमी सूक्त, पुरूरवा-उर्वशी-सूक्त आदि । वैदिक-कर्मकाण्ड में नाटकों के लिए उपयोगी सभी तत्त्व विद्यमान थे तथापि १-नाट्यशास्त्र १-११ से १७ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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