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________________ नीति-कथाएँ १६६ में जो इसके नाम के साथ तंत्र शब्द पाया जाता है वह स्वतंत्र कल्पना नहीं प्रतीत होती है । यह शब्द मूल नाम में रहा होगा। मूल-ग्रन्थ का नाम पंचतंत्र रहा होगा। बाद के संस्करणों में तन्त्रों के क्रम में अन्तर है तथा कहानियों के क्रम में अंतर है । अतः मल-ग्रन्थ में कितना और क्या पाठ्य था, यह निश्चय करना कठिन है । सीरिया की भाषा वाले अनुवाद में १० खण्ड हैं और अरबी वाले अनुवाद में २२ खण्ड हैं । ____ इसके तीन मुख्य संस्करणों के द्वारा मूल ग्रन्थ के विषय का ज्ञान हो सकता है-१. तन्त्राख्यायिका, २. उत्तरी भारत का प्रचलित संस्करण पंचतन्त्र, ३. बृहत्कथामंजरी और कथासरित्सागर के द्वारा ज्ञात पंचतन्त्र । इसके नाम में प्रयक्त तन्त्र शब्द से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ आचार अथवा नीति-विषयक ग्रन्थ है । इसकी रचना में काव्य की शैली को अपनाया गया है और गद्य तथा पद्य दोनों को सम्मिलित किया गया है । बाद के संस्करणों में इसका जो पंचतन्त्र नाम रक्खा गया है, वह पाँच तन्त्रों के आधार पर है । वे पाँच तन्त्र ये हैं -मित्रभेद, मित्रलाभ, विग्रह, लब्धप्रणाश और अपरोक्षितकारक । प्रथम तन्त्र में दिखाया गया है कि भेदनीति का प्रयोग करके किस प्रकार दो गीदड़ों ने सिंह और बैल में युद्ध करा दिया है । दूसरे तन्त्र में मित्रता और पारस्परिक सहयोग का महत्त्व दिखाया गया है । तीसरे तन्त्र में युद्ध, उसके कारण और सन्धि की उपयोगिता का वर्णन किया गया है । चौथे तन्त्र में दिखाया गया है कि किस प्रकार प्राप्त वस्तु भी असावधानी से नष्ट हो जाती है । पाँचवें तन्त्र में दिखाया गया है कि किस प्रकार बिना विचारे कार्य करने से नाश होता है । बाद के संस्करणों में ये पाँचों तन्त्र इसी प्रकार हैं, परन्तु उपर्युक्त लक्ष्यों की पूर्ति के लिए जो कहानियाँ दी गई हैं, उनमें पर्याप्त अन्तर है। ____ मूल ग्रन्थ के दो विभिन्न संस्करण प्राप्त हैं-तन्त्राख्यायिका और पंचतन्त्र । इनमें से प्रथम सीरियन संस्करण से अधिक मिलता है और मूल ग्रन्थ के अधिक समीप है। इसकी भाषा सरल और परिमार्जित है। संभवतः
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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