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________________ १० संस्कृत साहित्य का इतिहास था। इसीलिए पुस्तकों आदि को ग्रन्थ कहा जाता था । पत्तों के स्थान पर कागज का प्रयोग ११ वीं शताब्दी ई० में मुसलमानों के भारत में आगमन के पश्चात् प्रारम्भ हुआ। सबसे प्रचीन हस्तलेख वाला ताड़पत्र जो प्राप्त होता है, वह ८वीं शताब्दी ई० का है और सब से प्रचीन कागज पर लिखित हस्तलेख १२२३ ई० का है । कागज का व्यवहार प्रारम्भ होने के पश्चात् भी दक्षिण भारत में ताड़पत्रों का प्रयोग प्रचलित रहा । उत्तरी भारत में देवनागरी लिपि का प्रयोग प्रचलित है, परन्तु दक्षिण भारत में प्रान्ध्र, कन्नड़, मलयालम और अन्य लिपियों का प्रयोग होता है । संस्कृत में और प्राकृत में प्राप्त साहित्य में कुछ विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं-(१) कलात्मक रचनाओं और नैतिक रचनामों में कोई भेद नहीं किया गया है। कुछ ग्रन्थ जो कि सर्वथा कलात्मक हैं, उनमें नैतिक विचार वाले वक्तव्य भी पाए जाते हैं और जो नैतिक दृष्टि से महत्त्व वाले ग्रन्थ हैं, उनमें कलात्मक रूप भी पाया जाता है । (२) रचना-सम्बन्धी कोई नियन्त्रण नहीं पाया जाता है। कोई भी रचना गद्य या पद्य में हो सकती है, जैसे व्याकरण, कोश, वैद्यक, ज्योतिष, दर्शन इत्यादि गद्य और पद्य दोनों रूपों में पाए जाते हैं। (३) भारतीय लेखकों की प्रवृत्ति थी कि वे विषय का विवेचन और उसकी मीमांसा बड़ी सावधानी से करते थे। यह प्रवृत्ति वैज्ञानिक विषयों पर लिखने वाले लेखकों से प्रारम्भ हुई। क्रमशः यह प्रवृत्ति सभी विषय के लेखकों में फैल गई और इसका परिणाम यह हुआ कि व्याकरण, काव्य, राजनीति, संगीत, नाट्य-कला आदि विषयों की इसी प्रकार विस्तृत विवेचना और मीमांसा हुई । (४) अपने पूर्ववर्ती लेखकों के ग्रन्थों की व्याख्या और टीका की प्रवृति विद्वानों में हुई। इसी कारण प्रामाणिक ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखी गई । भारतवर्ष के प्रत्येक ग्रन्थ पर धर्म का प्रभाव है । __ भारतीय साहित्य के गंभीर और आलोचनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि उसमें कतिपय न्यूनताएँ भी हैं। लेखकों और उनके ग्रन्थों के विषय में कोई निश्चित सूचना नहीं मिलती है । कवि और लेखक अपना परिचय
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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