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________________ कथा-साहित्य १८६ वाहनदत्त की सहायता की । नरवाहनदत्त मदनमंजुका का पता लगाने में सफल हुआ और अन्त में विद्याधरों का महाराज हो गया । इस मुख्य कथा में कई अन्य कथाएँ सम्मिलित की गई हैं । बाण, दण्डी, सुबन्धु, त्रिविक्रमभट्ट, धनंजय आदि ने बृहत्कथा का उल्लेख किया है । इन सभी कवियों को इस कथा का मुख्य भाग ज्ञात था । यह ज्ञात नहीं है कि इनमें से किसी ने भी मूलग्रन्थ को देखा है या नहीं । बुधस्वामी ( वीं शताब्दी ई० ), क्षेमेन्द्र ( १०३७ ई० ) और सोमदेव ( १०८ ई० ) का कथन है कि उन्होंने मूल ग्रन्थ को देखा है और उन्होंने उसका संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया है । गंगा वंश के राजकुमार दूरविनीत ( ६०० ई०) किरातार्जुनीय की जो टोका लिखी है, उसमें १५वें सर्ग की पुष्पिका में लिखा है कि दूरविनीत ने गुणाढ्य की बृहत्कथा को संस्कृत में रूपान्तरित किया है । उपर्युक्त साक्षियों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि छठीं शताब्दी के बाद बृहत्कथा मूल रूप में साधारणतया प्राप्य नहीं थी । यह कश्मीर और नेपाल में तथा विन्ध्य पर्वत के कुछ प्रदेशों में, जहाँ गुणाढ्य ने इसकी रचना की थी, सुरक्षित रही । यदि गुणाढ्य के विषय में कथासरित्सागर के लेख पर विश्वास करें ता वररुचि ३२० ई० पू० पूर्व हुआ था, जब कि चन्द्रगुप्त मौर्य गद्दी पर बैठा था । गुणाढ्य का प्राश्रयदाता सातवाहन, आन्ध्रभृत्य राजाओं में से एक है । इस वंश का राज्यकाल ७३ ई० पू० से लेकर २१= ई० तक है । गुणाढ्य इसी समय में हुआ होगा । गुणाढ्य ने बृहत्कथा लिखने के लिए जिस पैशाची प्राकृत का प्रयोग किया है, वह विन्ध्य प्रदेश में व्यवहृत विभाषाओं में से एक प्रतीत होती है । श्रान्त्रभृत्य राजाओं की राजधानी गोदावरी नदी के किनारे प्रतिष्ठान नगर में थी । यह स्थान विन्ध्य पर्वत के समीप ही है । राजशेखर ने इस विचार का समर्थन किया है । डा० जार्ज ग्रियर्सन ने लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इन्डिया में अपना यह मत प्रस्तुत किया है कि पैशाची प्राकृत भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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