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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास भाषा को मृत तभी कहा जाता है, जब वह जनता पर तथा अन्य भाषाओं पर अपना प्रभाव सर्वथा छोड़ दे । जब इस अर्थ की दृष्टि से हम विचार करते हैं तो ज्ञात होता है कि संस्कृत मातृ-भाषा नहीं है । यह अब भी भारतवर्ष को विभन्न भाषाओं को अनुप्राणित और संपुष्ट करती है तथा भारतीय जनता को एक सूत्र में बाँधने के लिए एकमात्र साधन है। इस दृष्टि से यह अब भी जीवित भाषा है । इसके अतिरिक्त संस्कृत विद्वानों के द्वारा पहले की तरह आज भी लौकिक और धार्मिक कार्यों के लिए प्रयोग में लाई जाती है। प्राकृत भाषा, जो कि जनसाधारण की भाषा थी, साहित्यिक भाषा हो गई और ईसवीय शताब्दी के पहले से ही बोलचाल की भाषा रही। छठी शताब्दी ई० पू० में गौतम बुद्ध और महावीर ने प्राकृत में ही अपने सिद्धान्तों का उपदेश दिया। महाराज अशोक के समय में प्राकृत राजभाषा हुई । प्राकृत में ही शिलालेख आदि लिखे गए । ईसवीय शताब्दी के प्रारम्भ के समय प्राकृत साहित्यिक-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित न रह सकी और प्राकृत के समर्थकों ने भी हिन्दुओं के साथ विवादों और शास्त्रार्थों में संस्कृत भाषा का ही प्रयोग प्रारम्भ किया । इस समय के पश्चात् बौद्धों और जैनों के लिए भी संस्कृत ही साहित्यिक भाषा के रूप में रही । प्राकृत के प्रयोग का सर्वथा अभाव नहीं हुआ । विशेषरूप से जैन लेखक इसका प्रयोग करते थे। ___ बोलचाल की भाषा के रूप में प्राकृत की कई विभाषाएँ थीं। उनमें से मुख्य हैं:--(१) मागधी, जिसमें गौतम बुद्ध ने अपने सिद्धान्तों का उपदेश दिया है । (२) अर्धमागधी, इसके प्राचीन रूप में महावीर ने अपने सिद्धान्तों का उपदेश दिया है । (३) शौरसेनी । जिन प्रदेशों में ये भाषाएँ विकसित हुई हैं, वे क्रम से ये हैं :-(१) बिहार, (२) बनारस और उसके समीप का प्रदेश, (३) मथुरा का प्रदेश । मराठी और बंगला मागधी से निकली हैं । पूर्वी पंजाबी हिन्दी और गुजराती शौरसेनी से निकली हैं । ४००ई० के लगभग प्राकृत की एक विभाषा हुई, जिसका नाम अपभ्रंश पड़ा । साहित्य प्राकृत और आधुनिक प्रचलित भाषाओं के बीच में इसकी
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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