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________________ १७६ संस्कृत साहित्य का इतिहास उसी के परिणामस्वरूप ये भाग अन्य-लिखित प्राप्त होते हैं। यह भी सुझाव प्रस्तुत किया गया है कि इस ग्रन्थ का मूल नाम अवन्तिसुन्दरीकथा था। जो भाग नष्ट नहीं हुआ था, उसका नाम दशकुमारचरित रक्खा गया, क्योंकि संभवतः मूल ग्रन्थ का नाम अज्ञात हो गया था या जो भाग प्राप्त हुआ था, उसका नाम अवन्तिसुन्दरीकथा रखना उचित नहीं समझा गया, क्योंकि उसमें अवन्तिसुन्दरी का विशेष रूप से वर्णन नहीं है । इसका प्रारम्भिक भाग जा नष्ट हो गया था, वह अब अपूर्ण रूप में प्राप्त हुआ है। इस सुझाव को केवल कल्पनामात्र समझना चाहिए। ___ गद्य-काव्य की दृष्टि से दशकुमारचरित बहुत उच्चकोटि का नहीं है। इसमें व्याकरण-सम्बन्धी त्रुटियाँ हैं, विशेष रूप से पूर्वपीठिका वाले भाग में । लम्बे समास जो कि गद्य-काव्य का जीवन माना जाता है, इसमें प्रायः अप्राप्त हैं। दण्डी ने काव्यादर्श में जिस भावाभिव्यक्ति में ग्राम्यता की निन्दा की है, वह इसमें प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है । इस आधार पर आलोचकों का मत है कि काव्यादर्श का रचयिता दण्डी इस दशकुमारचरित का कर्ता नहीं है । कुछ अन्य आलोचकों का मत है कि दण्डी उच्चकोटि का साहित्यशास्त्री था, परन्तु वह निम्न कोटि का गद्य-लेखक था। यह उसके दशकुमारचरित से प्रकट होता है । यह भी मत प्रकट किया गया है कि दण्डी ने पहले दशकुमारचरित और बाद में काव्यादर्श लिखा है । पुष्ट प्रमाणों के अभाव में ये सब विचार केवल कल्पनामात्र समझने चाहिए। दण्डी पदलालित्य के लिए प्रसिद्ध है । दशकुमार चरित कुछ अंश तक इस बात की पुष्टि करता है । परन्तु यदि अवन्तिसुन्दरीकथा दण्डी की रचना मानी जाती है तो वह इसका अधिक अच्छा समर्थन करती है । इसका लेखक जो भी कोई हो, वह सप्तम उच्छवास के लिए विशेष प्रशंसा का पात्र है, क्योंकि उसमें उसने ऐसी रचना की है कि सारे उच्छवास में एक भी अोष्ठ्य वर्ण नहीं है।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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