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________________ १७० . संस्कृत साहित्य का इतिहास बताईं, जैसा कि जावालि ऋषि ने उसे बताया था । जाबालि ऋषि की कृपा से तोता वैशम्पायन ने अपने पूर्व जन्म की सारी कथा कही और फिर पुण्डरीक हो गया । राजा शुद्रक ने यह कथा सुनी और वह चन्द्रापीड हो गया । ये दोनों अपने प्रियानों से मिले और इनका विवाह-समारोह विशेष आयोजन के साथ हुआ। __ बाण के स्वर्गवास के कारण ही कादम्बरी अपूर्ण रह गई । कादम्बरी अवश्य ही हर्षचरित के बाद में लिखी गई है । दोनों ग्रन्थों की शैली की तुलना से ज्ञात होता है कि कादम्बरी की शैली अधिक परिप्कृत और परिमार्जित है। यदि कादम्बरी पहली रचना होती तो बाण के लिए यह सम्भव न होता कि वह कम परिष्कृत शैली में बाद के ग्रन्थ को लिखता । ___ ये दोनों ग्रन्थ भारत की ७वीं शताब्दी ई० की सामाजिक स्थिति के ज्ञान के लिए बहुत उपयोगी हैं। बाण ने अपनी यात्राओं के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त किया था, उससे वह प्रत्येक स्थान की रीति और प्रथाओं को बहुत सूक्ष्मता के साथ देखता था। उसने उन सबका बहुत विस्तार और सूक्ष्मता के साथ वर्णन किया है । अतः उसके वनों और नगरों के दृश्यों के वर्णन, राजप्रासादों, सेना-शिविरों, ऋषियों और उनके जीवन के वर्णन बहुत वास्तविक हैं। उसने मानव-हृदय की चेष्टानों का बहुत सूक्ष्मता से अध्ययन किया था । बाण की इस प्रतिभा का ज्ञान चन्द्रापीड को प्रथम बार देखकर कादम्बरी के हृद्भावों के वर्णन, प्रभाकरवर्धन का स्वर्गवास और उसका हर्षवर्धन पर प्रभाव, ग्रहवर्मा के वध पर हर्ष की प्रतिक्रिया आदि के वर्णनों से प्राप्त होता है। साहित्यिक दृष्टिकोण से कादम्बरी हर्षचरित से उत्कृष्ट है । बाण ने विशेष रूप से कादम्बरी पर अपनी निरीक्षण-शक्ति का सर्वस्व, कल्पना और उत्प्रेक्षा का सारा भण्डार और सहानुभूति की सारी भावना लगा दी है। कादम्बरी गुणाढ य की बृहत्कथा पर आधारित प्रतीत होती है। इसमें बाण ने अपनी प्रतिभा के प्रकाशन का बहुत स्वाधीन मार्ग अपानाया है। हर्षचरित
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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