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________________ गद्यकाम्य १६७ दो आख्यायिका है। यह कहा जाता है कि वररुचि ने चारुमती नामक गद्यग्रन्थ लिखा है । रामिल और सौमिल शूद्रककथा के रचयिता माने जाते हैं । उसी नाम के एक अन्य ग्रन्थ का सम्बन्ध भोज (१००५-१०५४ ई०) कृत पञ्चाशिका से लगाया जाता है । यह ज्ञात नहीं है कि यह ग्रन्थ, जिसका चिह्न 'आनन्द' है, दूसरी शूद्रककथा से अभिन्न है या नहीं। शातकर्णीहरण, मनोवती और तरंगवती ये भी गद्य-ग्रन्थ हैं। ये आन्ध्रभृत्य राजाओं के निरीक्षण में लिखे गए थे । इनमें से कुछ प्राकृत में हो सकते हैं । बाण ने भट्टार हरिचन्द्र और प्राढयराज को प्रमुख गद्यलेखक माना है। ये सब ग्रन्थ आजकल प्राप्य नहीं हैं। बाण ही सर्वप्रथम गद्यलेखक है, जिसके ग्रन्थ अब तक प्राप्य हैं। वह हर्षचरित और कादम्बरी का लेखक है। उक्त प्रथम ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि वाण श्रीवत्सगोत्र में उत्पन्न चित्रभानु का पुत्र था। उसका वंश वात्स्यायन वंश है । वह सोन नदी के किनारे पृथुकूट नामक ग्राम का वासी था। वह जब बालक था, तभी उसकी माता का स्वर्गवास हो गया था और जब वह चौदह वर्ष का हुआ, तब उसके पिता का भी स्वर्गवास हो गया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह सारे देश में घूमा । उसके इस यात्रा के साथी सभी प्रकार के व्यक्ति थे । वह जब घर लौटा, तब वह विद्या और अनुभव में समृद्ध हो गया था। एक दिन उसे हर्षवर्धन के राजद्वार में पहुँचने का निमन्त्रण मिला। तदनुसार वह हर्ष के राजद्वार में गया और वहाँ उसका सम्मान हुआ और वह राजकवि बना दिया गया। राज-सम्मान प्राप्त करने के कई वष बाद वह घर लौटा और सुखपूर्वक रहने लगा । बाण ने हर्षचरित में अपने विषय में ये बातें लिखी हैं। उसके बाद के जीवन के विषय में और कुछ ज्ञात नहीं है । हर्ष ६०६ ई० में गद्दी पर बैठा । इस समय के बाद ही बाण राजा हर्ष के राजद्वार में आश्रित कवि हुना होगा । अतः उसकी रचनाओं का समय सातवीं शताब्दी ई० का पूर्वार्ध मानना चाहिए। . १. महाभाष्य ४-२-६० ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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