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________________ कालिदास के बाद के कवि ११७ जानकीहरणं कतु रघुवंशे स्थिते सति । कविः कुमारदासश्च रावणश्च यदि क्षमः ।। भारवि ने किरातार्जुनीय नामक महाकाव्य लिखा है। इसमें १८ सर्ग हैं । यह महाभारत की कथा पर आधारित है । वनवास-काल में अर्जुन व्यास की सम्मति से हिमालय पर गया और शिव से दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति के लिए उसने तपस्या की । अर्जुन की भक्ति की परीक्षा के लिए शिव किरात के वेष में एक सुअर का पीछा करते हुए प्रकट हुए । शिव और अर्जुन दोनों ने ही उस सुअर पर बाण चलाए। सुअर मर गया। अर्जुन ने उस पर अपना अधिकार बताया । इस पर शिव और अर्जुन में विवाद हुआ और अन्त में वह युद्ध रूप में परिणत हुआ । दोनों ने दोनों पर प्रहार किए। अन्त में शिव की विजय हुई। उन्होंने अर्जुन की वीरता पर प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया और वरदान के रूप में पाशुपत अस्त्र दिया। तत्पश्चात् अर्जुन अपने भाइयों से मिलने के लिए लौटा। यह भाव महाभारत से लिया गया है। इसमें कुछ परिवर्तन भी किया गया है। इसके प्रथम सर्ग में दिया गया है कि पाण्डवों का एक दूत दुर्योधन के राज्य-प्रबन्ध का विवरण जानने के लिए गया हुआ था । वह लौटकर आता है और पाण्डवों को दुर्योधन के उत्तम और न्याययुक्त राज्य-प्रबन्ध की सूचना देता है। अतएव अर्जुन को दिव्य अस्त्र-प्राप्ति के लिए जाना पड़ा। अन्त में अर्जुन का स्कन्द और शिव के साथ युद्ध तथा वरदान के रूप में पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति का वर्णन है। भारवि के काव्य में अोज और शक्ति है । उसके वर्णन बहुत ही विशद हैं। उसकी शैली बहुत शक्तिशाली और अर्थगाम्भीर्य से युक्त है। उसमें माधुर्य की न्यूनता है। उसने व्याकरण सम्बन्धी नियमों के पालन में विशेष कुशलता प्रकट की है। उसने १५व सर्ग में शब्दालंकारों और चित्रालंकारों के प्रयोग में अपनी विशेष योग्यता प्रदर्शित को है। कुछ ऐसे श्लोक दिये हैं, जो सीधे और १. (क) भारवेरर्थगौरवम् । (ख) नारिकेलफलसंमितं वचो भारवेः । मल्लिनाथ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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