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________________ काव्य-साहित्य १०३ गुप्त महाराजाओं की उपाधि विक्रमादित्य की ओर संकेत करते हैं। उनकी यशोवृद्धि के लिए कालिदास ने ग्रंथ-नाम में उनको स्थान दिया है । कालिदास ने रघु के दिग्विजय का जो वर्णन किया है वह समुद्रगुप्त (३५० ई०) के दिग्विजय को ही लक्ष्य में रखकर किया है । कालिदास के समय तक लोगों को समुद्रगुप्त की दिग्विजय का पूर्ण स्मरण रहा होगा। रघु का हूणों को हराने का जो उल्लेख है, वह स्कन्दगुप्त (४५५ ई०) के हूणों के हराने के आधार पर है। पाश्चात्त्य आलोचकों ने कालिदास को गुप्त राजाओं के साथ सम्बद्ध करने का जो प्रयत्न किया है, वह निराधार है । उनका मत है कि संस्कृत भाषा की पुनः उन्नति का श्रेय गुप्त राजाओं को है । उन्होंने कवियों को आश्रय दिया । उनका समय भारतीय इतिहास में स्वर्ण-युग है । किन्तु यहाँ पर यह विचारणीय है कि विद्या-विषयक उन्नति के सम्बन्ध में भारतवर्ष गुप्त राजाओं को स्मरण नहीं करता है । इस विषय में भोज और विक्रमादित्य का नाम ही मुख्य रूप से लिया जाता है । इस विषय में पाश्चात्त्य आलोचकों की अपेक्षा भारतीय विद्वानों की सम्मति अधिक मान्य है, क्योंकि वे इस विषय को अधिक घनिष्ठता के साथ जानते हैं । यदि गुप्त राजा विक्रमादित्य और भोज के तुल्य संस्कृत के उन्नायक होते तो उनका भी नाम उसी आदर के साथ स्मरण किया जाता। अतः कालिदास के विषय में गुप्त राजाओं का जो मत पाश्चात्य विद्वानों ने रक्खा है, वह उनका ही आविष्कार है, इसमें सत्यता कुछ नहीं है। पाश्चात्त्य पालोचकों ने जो प्रमाण उपस्थित किया है, उससे यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि कालिदास गुप्त-काल में उत्पन्न हुए थे। कुमारसम्भव और विक्रमोर्वशीय नामों में ऐसी कोई अपूर्व बात नहीं रक्खी गई है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जाय कि इनमें गुप्त राजाओं का संकेत है। कुमार शब्द शिव के पुत्र कात्तिकेय के अर्थ में अत्यन्त प्रसिद्ध शब्द है । विक्रम शब्द का अर्थ है पराक्रम । विक्रमोर्वशीय का अर्थ है कि जिस नाटक में उर्वशी को
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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