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________________ अध्याय ११ काव्य - साहित्य का काल कालिदास से पूर्व का काल काव्य - साहित्य का काल रामायण और महाभारत के काल से बहुत अधिक मिला हुआ है । काव्य शब्द का अर्थ है कवि की कोई भी रचना । अतः काव्य के अन्तर्गत पद्य, गद्य, कथा, आख्यायिका, गीति और नाटक आदि सभी हैं । यह शब्द योगरूढ़ि के आधार पर कविता का अर्थ बोधित करता है । अन्य अर्थों में इसका प्रयोग निषिद्ध नहीं है । कवियों और उनके ग्रन्थों के विषय में पूर्ण सूचना न प्राप्त होने के कारण उनका समय आदि निश्चित रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है । अतएव यह भी संभव हुआ कि विभिन्न कवियों ने अपनी रचनाएँ किसी विशेष कवि के नाम से प्रसिद्ध कर दीं और अपना नाम नहीं दिया । इसीलिए एक कवि के नाम से प्राप्य ग्रन्थों की शैली और भाषा आदि में महान् अन्तर प्राप्त होता है । कतिपय ग्रन्थों के लेखक का नाम निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है, इसका कारण बताना सम्भव है । इस काल में कोई भी रचना तभी मान्यता प्राप्त कर सकती थी, जब उस समय के प्रसिद्ध आलोचक उस रचना का समर्थन कर देते थे । जिन रचनाओं का वे आलोचक समर्थन नहीं करते थे, वे रचनाएँ नष्ट हो जाती थीं या भुला दी जाती थीं । अतः साहित्य के प्रत्येक विभाग में जो उत्कृष्ट रचना होती थी, वही शेष रहने पाती थी । इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ रचनाएँ नष्ट हो गईं । अतः साधारण कोटि के कवियों ने अपनी रचना को नष्ट होने से बचाने का यह उपाय निकाला कि अपनी रचना को किसी श्रेष्ठ कवि के नाम से प्रचलित किया और इस प्रकार आलोचकों की घोर आलोचना से वे बच सके । ६६
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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