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________________ 1 ८४ छहढाला कोपसे न होती हैं और न उनकी प्रसन्नता से जाती हैं, इसलिये दूर करने के लिए देवताओं की पूजा करना बीमारी आदिको मूढ़ता ही है । शंका-कष्टके समय प्रत्येक मनुष्य भगवानका नाम लेता है, गुरुओं और महात्माओंका स्मरण करता है और यदि वह समर्थ होता है, तो विशेषरूपमें धार्मिक क्रिया, दान, पूजा आदि भी करता है। इस प्रकारकी शुभप्रवृत्तिको मूढ़ता कहना उचित नहीं । समाधान-आपत्ति के समय भगवानका नाम लेना, या विशेष धार्मिक कार्य करना बुरा नहीं है, क्योंकि उस से आपत्ति को सहन करने की शक्ति आती है। इतना ही नहीं, बल्कि आपत्ति में इस प्रकार की भावनाओं से पुराने अपराधों का पश्चात्ताप होता है, शत्रुओं की तरफभी प्रेमभाव जागृत होता है और समताकी भावना भी उत्पन्न होती है । परन्तु उसे रोगको दूर करनेकी चिकित्सा समझना मूढ़ता है । शंका- मूढ़ता तो अधर्म है अधर्म वही है, जो स्व-परको दुखदायक हो । रोग, आपत्ति, उपसर्ग आदिको दूर करनेके लिए यदि कोई देवपूजा, मंत्रजाप आदि करता है, तो इससे उसे या दूसरेको क्या कष्ट होता है ? समाधान-रोग आदि अनिष्ट आपत्तियोंको देवताओंकी कृपा अकृपा पर अवलम्बित समझ लेनेसे वास्तविक चिकित्सा
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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