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________________ तीसरी ढाल और तिर्यञ्चगतिमें उदय आने योग्य-फलदेनेवाली किसी भी कर्मप्रकृतिका बंध नहीं करता है। इन्हीं इकतालीस प्रकृतियोंके बंध नहीं होनेके कारण सम्यग्दृष्टि जीव मरकर नरकगति और तिर्यञ्चगतिमें उत्पन्न नहीं होता है। ___ अहो, सम्यग्दशनका कितना बड़ा माहात्म्य है कि उसके प्राप्त होते ही यह जीव एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होता, नारकी और कर्मभूमिके तिर्यञ्चोंमें नहीं पैदा होता । मनुष्यगति में जानेपर भी लूला, लंगड़ा, बहिरा, गूगा, हीनांगी या अधिकांगी नहीं पैदा होता। अल्प आयुका धारक नहीं होता, दीन, दरिद्री, रोगी, शोकी और कुटुम्ब-परिवारसे हीन नहीं होता। अभागी नहीं होता, नपुसक या स्त्री नहीं बनता। कुबड़ा, बौना या हुंडकसंस्थानवाला और हीनसंहननवाला नहीं होता, किन्तु वज्र-वृषभनाराचसंहनन और समचतुरस्र संस्थानका धारक होता है, महान् सौभाग्यशाली, विभवसम्पन्न, महापुरुषार्थी और कामदेवके समान सुन्दर शरीरका धारक मनुष्य होता है। यदि सम्यग्दृष्टि जीव देवगति में जावे, तो वहां भी वह भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें उत्पन्न नहीं होता, नियमसे कल्पवासी ही पैदा होता है उनमें भी आभियोग्य, किल्विषिक आदि नीच जातिका देव नहीं होता, किन्तु इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि महान् ऋद्धिधारी देवोंमें उत्पन्न होता है । इस सम्यग्दर्शनकी महिमा में आचार्योंने बड़े-बड़े ग्रन्थ रचे हैं। इसे ही धर्मरूपी वृक्षकी
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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