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________________ तीसरी ढाल ध्यान करने वाले हैं, ऐसे मुनि उत्तम अन्तरात्मा हैं। जो अनगारी या श्रावक-व्रतोंके धारण करने वाले आगारी (गृहस्थ ) हैं, ग्यारह प्रतिमाओंके धारक हैं, घे मध्यम अन्तरात्मा हैं, जिनेन्द्र चरणों में अनुरक्त अविरत-सम्यग्दृष्टि जघन्य अन्तरात्मा है। ये तीनों ही प्रकारके अन्तरात्मा मोक्षमार्ग पर चलने वाले हैं। जो शुद्ध आत्म-स्वरूप को प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें परमात्मा कहते हैं। वे परमात्मा दो प्रकारके हैं-सकल परमात्मा और निकल परमात्मा। जिन्होंने चार घातिया कर्मोंको नाश कर दिया है, और जो केवल ज्ञानको प्राप्त कर लोक और अलोक के समस्त पदार्थोंके ज्ञाता दृष्टा हैं, ऐसे समवसरणादि बहिरंग लक्ष्मी और अनन्तचतुष्टयरूप अन्तरंग लक्ष्मीके धारक श्री अरहंत भगवान सकल परमात्मा हैं। जो ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, रागद्वषादि भावकर्म और शरीरादि नोकर्म इन तीन प्रकारके कर्मरूप मलसे रहित हैं, ज्ञानरूप शरीर को धारण करते हैं अर्थात् अशरीरी हैं, लोकातिशायी महान् सिद्धपद को प्राप्त कर चुके हैं, ऐसे सिद्धपरमेष्ठी निकल परमात्मा हैं, जो अनन्तानन्त काल तक अनन्त सुखको भोगेंगे। इस प्रकार जीवके तीनों भेदोंका वर्णन कर प्रन्थकार भव्यजीवोंको तथा अपनी आत्माको संबोधन करते हुए कहते हैं कि इनमें से बहिरात्मापनेको हेय जान करके छोड़दो, और . अन्तरात्मा होकरके निरन्तर परमात्माका ध्यान करो, जिससे निरन्तर अविनाशी अनन्त आनन्दकी प्राप्ति हो।
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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