SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छहदाला लीन होकर स्थिर हो जाना सो निश्चय सम्यकचारित्र है। इस प्रकार निश्चय मोक्षमार्गका वर्णन किया । अब व्यवहार मोक्षमार्गका वर्णन करते हैं जो कि निश्चयमोक्षमार्गका कारण है, सो हे भव्य-जीवो ! उसे सुनो। विशेषार्थ-भेदरूप रत्नत्रयको व्यवहार-मोक्षमार्ग और अभेदरूप रत्नत्रयको निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं । भेदरूप रत्नत्रय साधन या कारण है और अभेदरूप रत्नत्रय उसका साध्य या कार्य है। सात तत्वोंके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहते हैं, वे सात तत्व ये हैं, उनका यह स्वरूप है, इत्यादि वचनात्मक कथनको भेद रत्नत्रय या व्यवहार मोक्षमार्ग जानना चाहिए । सात तत्वोंका स्वरूप जाननेसे जो आत्माका बोध उत्पन्न होता है, उसमें जो दृढ़ श्रद्धा जागृत होती है, उसमें जो आत्मा की तन्मयता हो जाती है, उसे अभेद रत्नत्रय या निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं । यह अवस्था वचन-व्यवहार से परे होती है, इसीलिए इसको अभेद रत्नत्रय कहते हैं। इसी अभेद रत्नत्रयको लाटी संहिताकारने एक प्राचीन पद्यका उद्धरण देकर कहा है कि दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः । स्थितिरात्मनि चारित्रं कुत एतेभ्यो भवति बंधः ।। आत्माका निश्चय ही सम्यग्दर्शन है, आत्माका यथार्थ ज्ञान ही सम्यग्ज्ञान है और आत्मामें अवस्थान ही सम्यकचारित्र
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy