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________________ २६ छहढाला समाधान-नरकसे निकला हुआ जीव अनन्तर पश्चात् तो नरकमें जा नहीं सकता, पर मनुष्य या तिर्यंच होकर पुन: नरक में अवश्य जा सकता है । प्रथम नरकसे निकलकर और मनुष्य या तिर्यंच होकर पुनः प्रथम नरकमें यदि उत्पन्न हो तो इस क्रम से लगातार आठ बार तक प्रथम नरकमें उत्पन्न हो सकता है । इसी प्रकार दूसरे नरकमें लगातार सात बार, तीसरे नरकमें लगातार छहबार, चौथे नरकमें पांचवार, पांचवें नरकमें चारबार छठे नरक में तीन बार और सातवें नरकमें दोबार लगातार उत्पन्न हो सकता है, इससे अधिक नहीं । शंका- किस-किस जातिके मनुष्य या तिर्यच जीव किसकिस नरक तक उत्पन्न हो सकते हैं ? समाधान-संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्रथम नरकके अन्त तक उत्पन्न हो सकते हैं, पेटसे चलने वाले सरीसृप आदि जीव दूसरे नरक तक, पक्षी तीसरे नरक तक, भुजंगादिक चौथे नरक तक, सिंह व्याघ्रादिक शिकारी जानवर पांचवें नरक तक, स्त्री छठे नरक तक और मत्स्य सातवें नरक तक उत्पन्न हो सकते हैं। मनुष्य पहले नरकसे लेकर सातों ही नरकों में अपने पाप कर्म के अनुसार उत्पन्न हो सकते हैं । इस प्रकार नरकगतिके दुःखोंका वर्णन समाप्त हुआ । अब ग्रंथकार मनुष्यगतिके दुःखोंका वर्णन करते हैं:जननी उदर वस्यो नव मास, अंग सकुचतें पाई त्रास । निकसत जे दुख पाये घोर, तिनको कहत न आवे ओर ॥ १४
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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