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________________ १६४ छहढाला संसार खार अपार पारावार तरि तीरहिं गए, अविकार अकल अरूप शुचि चिद्र प अविनाशी भए ।१२। __ अर्थ-अरहंत अवस्थामें विहार करते हुये धर्मोपदेश देकर आयुके अन्त समयमें योग निरोध कर शेष चार अघातिया कर्मोंका भी घात कर एक समयमें ईषत्प्राग्भार नामकी आठवीं पृथ्वी है, उसके ऊपर स्थित सिद्धालयमें जा विराजमान होते हैं । इन सिद्धोंके आठ कर्मोंके विनाशसे सम्यक्त्व आदिक आठ गुण प्रगट होते हैं। ऐसे मुक्त हुए जीव संसार रूपी खारे और अगाध समुद्रको तैरकर उसके पारको प्राप्त हुये, और अब वे सर्व प्रकारके विकारोंसे रहित, शरीर-रहित, रूप-रस-गन्ध-स्पर्श रहित, निर्मल, चिदानन्दमय अविनाशी सिद्ध दशाको प्राप्त हो गये हैं। _ विशेषार्थ-चार घातिया कर्मीके नाश करनेसे अरहन्त अवस्था प्रगट हो जाती है उस समय उनके अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ये चार अनन्तचतुष्टय प्राप्त हो जाते हैं । तदनन्तर शेष चार अघातिय-कर्मोके नाशसे उनके सिद्ध अवस्था प्रगट होती है, उस समय उनके चार गुण और भी प्रगट हो जाते हैं। इस प्रकार सिद्धके आठ कर्मोंके नाशसे आठ महागुण प्रगट होते हैं। किस कर्मके नाशसे कौनसा गुण प्रगट होता है, इसकी तालिका इस प्रकार है: १ ज्ञानावरण कर्मके नाशसे अनन्त ज्ञान,
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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