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________________ १७० छहढाला जानेके उपायभूत शुद्ध उपयोगको इसने आज तक प्राप्त नहीं किया, जिसके कारण आज भी संसारमें परिभ्रमण कर रहा है । इस प्रकार लोकका स्वरूप चिन्तवन करना सो लोक भावना है। इसके बार बार चिन्तवन करने से जीवके तत्व- ज्ञानकी प्राप्ति होती है और उससे फिर यह मोक्षको पानेका प्रयत्न करता है। ___ अब बोधि दुर्लभ भावनाका स्वरूप कहते हैं: अन्तिम-ग्रीवकलौंकी हद, पायौ अनन्त विरियां पद । पर सम्यग्ज्ञान न लाधौ, दुर्लभ निजमें मुनि साधौ ॥१३॥ __ अर्थ-इस जीवने नौंवे वेयककी हद (सीमा) तकके इन्द्र, अहमिन्द्र आदि पदोंको अनन्त बार पाया है, पर सम्यग्ज्ञानको नहीं प्राप्त कर पाया जिसके कारण वह आजभी संसारमें परिभ्रमण कर रहा है ऐसे अत्यन्त दुर्लभ सम्यग्ज्ञानको सच्चे साधु ही अपने आपमें सिद्ध करते हैं। विशेषार्थ-यथार्थज्ञानको बोधि कहते हैं । रत्नत्रय स्वभावकी प्राप्ति, ज्ञान और अनुष्ठान को भी बोधि कहा है । इसकी . असुहेण निरयतिरियं सुह उवजोगेण दिविज-णर सोक्खं । सुद्धण लहइ सिद्धि एवं लोयं विचिंतिज्जो ॥४२।। बारस-अगुवेक्खा
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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