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________________ चौथी ढाल १४३ दिनों तक शक्ति के अनुसार निर्जल उपवास करे । जब देखे कि अन्तिम समय आगया है तो पंचनमस्कार मंत्रका स्मरण करते हुए पूरी सावधानी के साथ शरीर त्याग करे । 1 यह समाधिमरणकी विधि है । आत्म कल्याणके इच्छुक पुरुषों का कर्तव्य है कि जीवन के अन्तमें इस संयासको अवश्य धारण करें । जिन भगवान् ने इस संन्यासको जीवन भर की तपस्या का फल कहा है, इसलिए जब तक शरीर में शक्ति रहे, होश- हवाश ठिकाने रहें, तब तक समाधि - मरण में पूरा प्रयत्न करना चाहिए * । श्रावकके बारह व्रतोंके समान समाधिमरणके भी पाँच अतिचार बतलाए गये हैं, समाधिमरण करनेवाले पुरुषको उनका त्याग करना चाहिये । समाधि मरणके अतिचार - समाधि मरण स्वीकार कर लेने के पश्चात् शरीरको स्वस्थ होता हुआ देखकर जीनेकी इच्छा • शोकं भयमवसादं क्लेदं कालुष्यमरतिमपिं हित्वा । सत्वोत्साहमुदीर्य च मनः प्रसाद्य श्रुतैरमृतैः ॥ श्राहारं परिहाप्य क्रमशः स्निग्धं विवर्धयेत्पानम् । स्निग्धं च हापयित्वा खरपानं पूरयेत्क्रमशः । खरपानहापनामपि कृत्वा कृत्वोपवासमपि शक्त्या । पंच नमस्कारमनास्तनुं त्यजेत्सर्वयत्नेन ॥ रत्नक० *अन्तः क्रियाधिकरणं तपः फलं सकलदर्शिनः स्तुवते । तस्माद्यावद्विभवं समाधिमरणे प्रयतितव्यम् रत्नक●
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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