SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथी ढाल १४१ क्या बराबरी कर सकता है, इत्यादि प्रकार से ईष्याभाव रखना, सो मात्सर्य नामका पांचवा अतिचार है * । इस प्रकार श्रावकके बारह व्रतोंके पांच-पांच अतिचारोंका वर्णन किया । श्रावक को चाहिए कि उक्त व्रतों को पालते हुए अतिचारोंको पूर्ण सावधानी के साथ बचाते रहें, अन्यथा व्रतमें . निर्मलता नहीं रह सकती है । ग्रन्थकारने अन्तमें जिस समाधि मरणकी ओर संकेत किया है। उसका यहां पर संक्षिप्त वर्णन किया जाता है: - जीवनका अन्त K जाने पर, या जिसका प्रतीकार ( इलाज आदि ) संभव न हो ऐसे रोग, उपसर्ग, बुढ़ापा आदि आजाने पर धर्मकी रक्षाके लिए अपने शरीर के त्याग करने को संन्यास कहते है । समाधिमरण और सल्लेखना भी इसके नाम हैं । सम्यक् प्रकार शरीर के न्यास ( त्याग ) को संन्यास कहते हैं । सावधानी पूर्वक मरना सो समाधिमरण है । काय और कषायों को भले प्रकारसे कृश करना सल्लेखना कहलाता है । ★ प्रयच्छन्नच्छमन्नादि गर्व मुद्वहते यदि । दूषणं लभते सोऽपि महामात्सर्यसंज्ञकम् ||२३०॥ लाटीसंहिता सर्ग ६ "उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकार । धर्माय तनुविमोचनमाहुः तल्लेखनामार्याः ।। सम्यक्काककषायलेखना सल्लेखना ॥ रत्नक • सर्वार्थसिद्धि ० ७ सूत्र २०.
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy