SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० छहढाला है, इसेही साकार-मन्त्रभेद कहते हैं ३ । दूसरों को ठगनेके अभिप्रायसे झूठे बही खाते बनाना, नकली चिट्ठी स्टाम्प आदि लिखना जाली दस्तावेज तैयार करना इत्यादि प्रकारके कार्योंको कूटलेख. क्रिया नामका अतिचार कहते हैं ४। किसीकी धरोहरको भूलसे कम माँगने पर हड़प जाना न्यासापहार नामका अतिचार है ५* | जैसे कोई पुरुष रुपया जेवर आदि द्रव्यको धरोधर रखगया । कुछ समय पीछे अपने द्रव्यको उठाने आया और भूलकर कुछ कम माँगने लगा, तो उससे इस प्रकार भोले बन कर कहना कि भाई, जितना तुम्हारा हो सो ले जाओ, इस प्रकार जानबूझ कर दूसरेके कुछ द्रव्य को हड़पने के वचन बोलना सो न्यासापहार, नामका सत्याणुव्रतका अतिचार होता है। यदि वह उस द्रव्यको हड़प जाता है, तो वह तो प्रत्यक्ष चोरी ही है जो अतिचार न होकर अनाचार ही कहलायगा। (३) अचौर्याणुव्रतके अतिचार-स्वयं चोरीके लिए जाते हुए या चोरी करते हुए पुरुषको चोरीके लिए प्रेरणा करना या दूसरे से प्रेरणा कराना, या अनुमोदना करना सो चौर-प्रयोग नामका अतिचार है । यदि वह किसी नये आदमी से जो चोरी नहीं करता है, उसे यदि चोरीके लिए भेजता है, तो अतिचार न रहकर अनाचार कहलायगा क्योंकि वह तो साक्षात् चोरी *परिवादरहोभ्याख्या पैशुन्यं कूटलेखकरणं च । ग्यासापहारितापि च व्यतिक्रमाः पंच सत्यस्य ।। रत्नक.
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy