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________________ १२४ छहढाला प्रकार राग-द्वषमयी बुरे विचार इसी अनर्थदंडके अन्तर्गत जानना चाहिए। २ पापोपदेश-खेती, व्यापार आदि आरंभ-समारंभ-वर्धक पाप कार्यों का उपदेश देना पापोपदेश नाम का अनर्थदंड है। ३ प्रमादचर्या-बेकार पृथिवी खोदना, पानी ढोलना, आगजलाना, पंखा चलाना, वृक्ष आदि कटवाना और निष्प्रयोजन इधर-उधर डौड़ना, घूमते फिरना सो प्रमादचर्या नामका अनर्थदंड - ४ हिंसादान-हिंसाके साधनभूत फरशा, कृपाण, तलवार, धनुष, हल, अग्नि आदिका दूसरों को स्वयं या मांगने पर देना, हिंसादान नामका अनर्थदंड है ।। ___५ दुःश्रुति-राग-द्वेषको बढ़ाने वाली और चित्तको कलुषित करने वाली प्रारंभ, परिग्रह, मिथ्यात्व, युद्ध, रास-रंग शृंगार आदि की . कथाओंका सुनना सो दुःश्रुति नामका पांचवां अनर्थदंड है। ___ इन पांचों प्रकारके तथा इसी प्रकारके अन्य भी अनर्थदंडोंका त्याग करना सो अनर्थदंड त्याग नामका तीसरा गुणव्रत है । इस प्रकार तीनों गुणवतोंका स्वरूप कहा ___ अब चार शिक्षाव्रतोंका वर्णन करते हैं--जिनके परिपालनसे मुनि-व्रतके धारण करनेकी शिक्षा मिले उन्हें शिक्षा-व्रत कहते हैं । वे चार हैं-१ सामायिक शिक्षाव्रत, २ प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत, ३ भोगोपभोग परिणाम शिक्षाबत, ४ अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत ।
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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