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________________ छहढाला __समाधान-साधारण शरीर नामकर्मके उदयसे जिन अनन्त प्राणियोंको एक साधारण अर्थात सामान्य शरीर मिलता है उन्ह साधारण शरीर वनस्पतिकायिक कहते हैं। इस एक शरीरमें रहनेवाले अनन्ते जीवोंका एक साथ ही आहार होता है, एक साथ ही सब श्वास-उच्छवास लेते हैं, एक साथ ही वे उत्पन्न होते हैं और एक साथ ही मरणको प्राप्त होते हैं। ___ इस साधारण शरीर वनस्पतिको ही निगोद कहते हैं और उसमें रहनेवाले जीवोंको निगोदिया जीव कहते हैं। ये अनन्त निगोदिया जीव जिस एक साधारण शरीरमें रहते हैं, वह शरीर इतना छोटा होता है कि हमारी आंखोंसे दिखाई नहीं पड़ता । श्वासके अठारहवें भागमें निगोदिया जीवोंके उत्पन्न होने और मरते रहने पर भी निगोद शरीर ज्यों-का-त्यों बना रहता है, उसकी उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात कोड़ा-कोड़ी सागर-प्रमाण है । जब तक यह स्थिति पूर्ण नहीं हो जाती है, तब तक इसी प्रकार उस शरीरमें प्रतिक्षण अनन्तानन्त जीव एक साथ ही उत्पन्न होते और मरते रहते हैं । __ शंका-निगोद कहां है अर्थात् निगोदिया जीव कहां-कहां रहते हैं ? समाधान-निगोदिया जीव दो प्रकारके होते हैं—एक सूक्ष्म निगोदिया, दूसरे बादर निगोदिया । सूक्ष्म निगोदिया जीव तो सारे लोकाकाशमें ठसाठस भरे हुए हैं, ऐसा तिलमात्र भी कोई स्थान नहीं है, जहां अनन्त निगोदिया जीव न रहते
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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