SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरी ढाल Σε कहा है * । इसलिए हे भव्य जीवो ! ऐसे पवित्र और महान् सम्यग्दर्शन को अवश्य धारण करो । छहढालाकार पं० दौलतरामजी अपनी आत्मा को तथा अन्य आत्महितैषियोंको संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे सयाने—समझदार आत्मन् ! सुन, समझ और चेत, सावधान हो जा और अपने समय को व्यर्थ वर्वाद मत कर | देख, यदि इस जन्ममें भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त नहीं कर सका, तो फिर इस मनुष्य-भव का मिलना अत्यन्त कठिन है । इस प्रकार सम्यग्दर्शनका वर्णन किया । तीसरी ढाल समाप्त ★ दर्शनं ज्ञानचरित्रात्साधमानमुपाश्नुते । दर्शनं कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे प्रचच्यते ॥ ३१॥ रत्नकरंड श्रावकाचार
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy