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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः। वली केतला एक कहे जे प्रथम गुणठाणे शुद्ध करणी छै आज्ञा माहि छै तो "उवाई" सूत्र में कह्यो। जे विना मन शीलादिक पाले ते देवता थाइ ते परलोक ना अनआराधक कह्या । ते माटे तेहना शीलादिक आज्ञा बाहिर छै । जे आज्ञा माहि हुवे तो. परलोक ना आराधक कहिता । इम कहै तत्रोत्तरं इहां "उवाई' में कह्यो जे विगय (घृतादिक ) न लेवे पुष्प अलंकार न करे। शीलादिक पाले, इत्यादिक हिंसारहित निरवद्य करणी करे ते करणी आशा मांहि छै। ते करणी अशुद्ध किम कहिये। अनें परलोक ना आराधक कह्या छै, ते सर्व थकी माराधक आश्रय कहा। तथा सम्यक्त्व नी आराधना आश्री ना कह्यो पिण देशमाराधना आश्री तथा निर्जरा धर्म आश्री आराधना नोना जी कहो। जिम भगवती श० १० उ० १ कह्यो. पूर्व दिशे “धम्मत्थिकाए" धर्मास्तिकाय नथी एहवू का। अनें धर्मास्तिकाय नो देश प्रदेश तो छै, तो पूर्व दिशे धर्मास्तिकाय नो ना कह्यो ते तो सर्वथकी धर्मास्तिकाय बों छै । पिण धर्मास्तिकाय नो देश वयों मथी। तिम अकाम शील उपशान्त पणो ए करणी रा धणी ने परलोक ना आराधक नथी, इम कह्या । ते पिण सर्वथकी आराधक नथी। परं निर्जरा आश्री देशमाराधक तो ते छै । जिम पूर्व दिशे धर्मास्तिकाय सर्व थकी नथी। तिम प्रथम गुणठाणे शुद्ध करणी करे ते पिण सर्वथकी आराधक नथी । जिम पूर्व दिशे धर्मास्तिकाय नो देश छै, ते भणी देशथकी धर्मास्तिकाय काहइ तिम प्रथम गुणठाणे शुद्ध करणी करे, ते निर्जरा लेखे तो देशआराधक कहिइ । ते देशआराधक नी साक्षी. भगवती श० ८ उ० १० का छै विचारि ले। जिम भगवती श० उ० ६ तो साधु ने निदोष दीधां एकान्त निर्जरा कही पर पुण्य नों नाम चाल्यो नहीं। अनें “ठाणांग" ठाणे : “अन्नपुन्ने" ते साधु ने निधि अन्न दीधां पुण्य नो बंध कटो, पिण निर्जरा रो नाम चाल्यो नहीं। तो उत्तम विचारी ए विद्रं पाठ मिलावै । जे साधु में दीधां निर्जरा पिण हुवे अनें पुण्य पिण बंधे। तिम प्रथम गुणठाणा रो धणी शुद्ध करणी करे तेहनें “उवाई" में तो कलो परलोक ना भाराधक नथी । अनें भगवती श० ८ उ० १०' कह्यो । ज्ञान बिना जे दरणी करे ते देशमाराधक छै । ए बिहूं पाठ रो न्याय मिलावणो । सर्वथकी तथा संवर आश्री तो आराधक नथी । अनें निर्जरा आश्री तथा देश थकी आराधक तो छ । पिण जावक किश्चिन्मात्र पिण भाराधक नथी, पहवी घी थाप करपी नहीं
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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