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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः। २३ 3......... केतला एक पाखंडी कहे-सम्यग्दृष्टि कुशीलादिक अनेक सावध कार्य करे ते सर्व शुद्ध छ। सम्यगदृष्टि में पाप लागे नहीं। सम्यगदृष्टि ने पाप.लागे तो ते सम्यगदृषि रो-पराक्रम शुद्ध क्या ने कहै । तत्रोत्तर-जो सम्यगद्रष्टि ने पाप लागे नहीं तो भगवान महावीर स्वामी दीक्षा लीधी जद इम क्यूं कह्यो “जे हूं आज थकी सर्व पाप न करू" इम कही चारित्र पटिवजो छै । ते पाठ लिखिये छ। .. . .. तओणं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दहिणं वामेण वामं पंचमुट्टियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोकारं करेइ करेत्ता “सब्बं मे अकरिणिज्ज पापकम्म” तिकटु सामाइयं. चरितं. पड़िवजइपड़िवजइत्ता । (श्रावारांग. अ०१५) स० तिवारे. स० श्रमण भगवन्त महावीर दा० जीमणे हाथसू. दा० जीमणे पासा रो. पा० डावा हाथ सू डावा पासा रो. ५० पंचमुष्टिक लोचकरो में. सि. सिद्धां नें. . नमस्कार की करीने स० सर्व. मे मुझने. अ० करनो योग्य नथी. पा० पाप कर्म. ति० इम करीने. सा० सामायक. च० चारित्र. ५० पड़िबज्ने आदरे. ५० अादरी ने तिण अवसरे । अथ इहाँ भगवन्त दीक्षा लेतां कह्यो--"जे आज थकी सर्वथा प्रकारे पाप मोने न करिवो" इम कही सामायक चारित्र आदलो। जो सम्यग्दृष्टि में पाप लागे नहीं तो भगवन्त सम्यग्दृष्टि था जो आगे पाप लागतो न हुन्तो तो “है आज पकी सर्व पाप न करू" इम कहिवारो कांइ काम । डाहा हुचे तो विचारि जोईजो। इति १२ बोल सम्पूर्ण।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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