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________________ भ्रम विलसनम् । कहता “ए मास क्षमण इसी करणी करे तो पिण माया थी रुले" इहां माया में अत्यन्त खोटी देखाड़वा तेहनी शुद्ध करणी रो नाम कह्यो, अने माया थी गर्भाः दिकना दुःख कह्या छै । अने तेहना तप थी तो दुःख हुवे नहीं । तेहना तप थी पुण्य तो ते पिण कहै छै । अने पुण्य थको तो दुःख पामे नहीं । अर्ने इहां अनन्त दुःख कह्या. ते तो माया ना फल छै, परं तपस्या ना फल नहीं, तपस्या तो निरवद्य छै। तिवारे कोई कहै—ए आज्ञा माहिली करणी छै, तो मोक्ष क्यूं वजों तेहनो उत्तर-पहने श्रद्धा ऊधी ते माटे मोक्ष नथी । परं मोक्ष नो मार्ग वज्यों नथी। जे अव्रती सम्यग्दृष्टि ज्ञान सहित छ, तेहने पिण चारित्र विण मोक्ष नथो। परं मोक्ष नो मार्ग कहिये । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ८ बोल सम्पूर्ण । केतला एक इम कहै । जे मिथ्यात्वी ना पचखाण (प्रत्याख्यान ) दुपचखाण ( दुष्प्रत्याख्यान ) कह्या छै। तेहनी करणी जो आज्ञा में हुवे तो ते दुपचखाण क्यूं कह्या। तेहनो उत्तर-दुपचखाण कह्या ते तो ठीक छै। जे जीप. अजीव. बस. स्थावर. ने जाणे नहीं । अनें सर्व जीव हणवारा त्याग किया, ते जीव जाण्यां बिना किण ने न हणे, केहना त्याग पाले। जे जीव ने जाणे नहीं, जीव हणवारा त्याग करे ते किम पाले । ते न्याय दुपचखाण कह्या छै। ते पाठ लिखिये छै। __ सेणणं भंते ! सब्ब पाणेहिं. सब्ब भूएहिं सब जीवेहिं. सब सत्तेहिं. पञ्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवइ तहा दुपञ्चक्खायं गोयमा! सब पाणेहिं जाव सव्व सत्तेहिं पञ्चक्खाण मिति वदमाणस्स सिय सुपञ्चक्खार्य भवइ. सिय दुपच्चखायं भवइ । सेकेण?णं भंते ! एवं वुच्चइ सब्ब पाणेहिं जाव सबसत्तेहिं जाव सिय दुपच्चक्खायं भवइ। गोयमा! जस्सणं सब पाणेहिं जाव सब्ब सत्तेहिं पञ्चवखामिति वद
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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