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________________ मि यात्वि क्रियाऽधिकारः। ए तो सांप्रत भली करणी आश्रय मिथयात्वी ने सुव्रती कह्यो छ । अने जो सम्यग्दृष्टि हुवे तो मरी ने मनुष्य हुवे नहीं। अने इहां कह्यो ते मनुष्य मरी मनुष्य में उपजे ते न्याय प्रथम गुण ठाणे छै। तेहनें सुव्रती कह्यो। ते निर्जरा रो शुद्ध करणी आश्रय कह्यो । तेहने अशुद्ध किम कहोजे। डाहा हुवे तो विचारि जोजो। इति ५ बोल सम्पूर्ण। केतला एक एड्व कहे-जे सम्यगदृष्टि मनुष्य तिर्यञ्च एक वैमानिक टाल और आयुषो न वांधे। ते पाठ किहां कह्यो छै। ते सूत्र पाठ लिखिये छै ।। मय पजव णाणीणं भत्ते पुच्छा. गोयमा ! णो नेरइया उयं पकोति णो तिरिक्ख जोणिया णोमणस्स देवा उयं पकरेन्ति जइ देवा उयं पकरेन्ति किं भवन वासि पुच्छा गोयमा ! णो भवनवासि देवा उयं पकरन्ति णो वाणमन्तर णो जोतिसिय. वेमाणिय देवा उयं पकरेन्ति । . (भग श० ३० उ०१) म० मन पर्यवज्ञानी नी. भ. हे भगवन्त ! पु० पृच्छा. हे गौतम ! णो० नारकी ना प्राथुषा प्रते करे नहीं. णो नहीं तियंचना आयु प्रते करे णो नहीं मनुष्य नो प्रायु प्रते करे. दे देवता वायु प्रते करे, तो कि० कि सू भवनवासो देव श्रायुः प्रते करे ए प्रश्न. हे गौतम ! णो० नहीं भवनवासी आयु प्रते करे. णो नहीं व्यन्तर देव आयुः प्रते करे. णो नहीं ज्योतिषो देव प्रायु प्रते करे. वे वैमानिक देव प्रायु प्रते करे । इहां मन पर्यव ज्ञानी एक वैमानिक नो आयुषो बांधे. ए तो मन पर्याय ज्ञानी नो कह्यो। हिचे सम्यग्दृष्टि तिर्यञ्च आयुषो वांधे. ते पाठ लिखिये छ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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