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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः। स० तिवारे तु तु. मे हे मेव ! ता० ते सुसला पा० प्राण भूत जीव सत्वनो अनुकम्पा करो. सं० संसार योगेवाको करणो रह्यो. म० मनुष्य नो अायुषो बांध्यो । अथ अठे ते सुसला प्राण. भूत. जीव. सत्व.री अनुकम्पा करी ने हाथी परीत संसार करी मनुष्य नो आयुषो बांध्यो कह्यो। ए पिण मिथ्यावृष्टि थके परीत संसार कियो। ते शुद्ध करणी आज्ञा में छ। सम्यगद्रष्टि हुचे तो मनुष्य नो मायुषो बांधे नहीं। सम्यगदृष्टि तिथंच रे निश्चय एक वैमानिक रो आयुषो बंधे। यहां को एक पापण्डो अयुक्ति लगावी कहै-तिण वेला हाथी ने उपशम सम्यक्त्व माज्या तिण सम्यगद्रुष्टि थी परीत संसार कियो । अन्तर्मुहूर्त में ते सम्यग्दृष्टि घमी ने मनुष्य नो आयुषो वांध्यो, एहवो झूठ बोले । इहां तो सम्यग्दृष्टि नो नाम चाल्यो नहीं। सूत्र में पाधरो कह्यो छ । जे सूसलारी दया थी परीत संसार करी मनुष्य मो आयुषो बांध्यो । पिण इम न कह्यो-जे सम्यग्दृष्टि थी परीत संसार करी पछे सम्यग्दृष्टि वमी ने मनुष्य नो आयुषो वांध्यो, पहवो बोल तो चाल्यो नहीं। वली मेघकुमार ने भगवन्ते कह्यो। हे मेघ ! ते तिर्यञ्च रा भव में तो सम्यक्त्व रत्न रो लाभ न पायो । जद पिण दया थी परीत संसार कियो तो दिवसानो स्यूं कहियो पहवो कह्यो । ते पाठ लिखिये छ । तंजइ ताव तुमे मेहा ! तिरिकत्र जोगाय भाव मुवागएणं अपडिलद्ध सम्मत्तरयण लभेणं से गए पाण्णाणु कंपयाए जाव अन्तरा चेव संधारिये णो चेवणं गिखित्ते कि मंग पुण तुमे मेहा ! इयाणिं बिपुल कुल समुद्भवणं । । ज्ञाता अध्ययन १) सं० ते माटे सार प्रथम. ज. जो. त० तुमे. मे० हे मेघ ! ति तियंचनो गति नो भाष पाम्यो तिहां अन लाध्यो न पाम्यो. स० सम्यक्त्व रत्न नो लाभ से. ते. पा. प्राणी जो अनुकंपाए करी जा. ज्यां लगे. अ० पगरे बिचाले सुसला बैठो छै मो० नहीं निधय ऊपर पग मूक्यो मुसला उपर. कि तो किसू कहिवो. हे मेघ! इ. हिवड़ा वि. विस्तीर्ण F कुसरे विषे स. उपनो हे मेघ !
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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