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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकार। - आराधक न कहिणो। ए पिण तिण री करणी रो कहिणो। अनें चौथे भांगे अनार्य ने सर्व विराधक कह्यो। ए पिण तिण रे लेखे अनार्य री करणी रो सर्वविराधक कहिणो। पिण मोक्ष मार्ग रो सर्वविराधक न कहिणो। अने जो या तीना ने मोक्ष मार्ग रा आराधक तथा विराधक कहे, तो प्रथम भांगे वाल तपस्वी ने पिण मोक्ष मार्ग रो देशआराधक कहिणो। ए तो प्रत्यक्ष पाधरो भगवन्ते कहो । जे साधु ने तो सर्वक्षराधक मोक्ष मागे नो क.यो. तिण रो देश मोक्ष रो मार्ग तपरूप बाल तपस्वी आराधे ते भणी बाल तस्थी नेमोक्ष मार्ग से देश आराधक कह्यो छ। अने जे अजाण कहे---तेजनी करणी रो देश अराधक कह्यो है। त विरुद्ध कहै छ। जे तेहणी करणी से तो सईआराधक है। जे पोता नी करणी रो देश आराधक किम हुवे। जे पोतारी करणी रो देशभरावक कहे ते अण विभास्या ना बोलण हारा छ। मद पीधां मतवालां नी परे बिना विचासां बोले छै। ए तो प्रत्यक्ष मोक्ष रो मार्ग तपरूप आराधे ते भणी देश अराधक कह्यो छै। भगवती नी टीका में पिण ज्ञान तथा सम्यक्त्व रहित क्रिया सहित बाल तपस्वी ने मोक्षमार्ग नों देश आराधक कह्यो छै। ते टीका लिखिये छ। देसाराहाति-स्तोक मंशं मोक्ष मार्गस्याराधयती त्यर्थः । सम्यग्बोध रहितत्वात् क्रिया परत्वात् । एहनो अर्थ-स्तोक कहतां थोड़ो अंश मोक्ष मार्ग रो आराधे ते सम्यग्वोध ते सम्यग्दष्टि रहित छै। अने क्रिया कारवा तत्पर छै। ते भणी देश आराधक रह्यो । वली टीका में "सुयसंपण्णे" कहितां ध्रुत शव्दे ज्ञान दर्शन ने कह्यो छै। ते टीका लिखिये छ। श्रुत शब्देन ज्ञान दर्शनयोर्गृहीतत्वात् । एहनों अर्थ-श्रुत शब्दे करि ज्ञान दर्शन बेहंनो ग्रहण करिये। इहां शान दर्शन में श्रुत कह्या छै ते श्रुते करी रहित कह्यां माटे मिथ्यावृष्टि, अने शील क्रिया सहित ते भणी देश आराधक कह्यो. एतो चौड़े मोक्ष मार्ग रो: अराधक कटीका में तथा बड़ा टत्रा में पिण कह्यो। अने इण करणी ने आज्ञा वाहिर कहे ते वीतराग
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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