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________________ सूत्रपठनाऽधिकारः। इहां पिण निर्गन्य ना प्रवचन ने सिद्धान्त कह्या । जे सिद्धान्त भणवारी आशा साधु नें इज छै। ते माटे निर्ग्रन्थ ना प्रवचन कह्या । सग्रन्थ ना प्रवचन न कह्या । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ७ बोल सम्पूर्ण तथा सूयगडाङ्ग श्रु० १ अ० ११ में कह्यो। ते पाठ लिखिये छ। आयगुत्ते सयादत्त छिन्न सोए अणासवे । ते धम्म सुधम्मक्खाई पडिपुण मणे लिसं ॥२४॥ (सूयगडाजश्रु०१० ११ गा००४) प्रा० मन. वचन कायाइ करी जेहनी प्रात्मा गुप्त है. ते प्रात्मा गुप्त छै. सदा इ काले इन्द्रिय नों दमणहार छि० छेद्या है संसार स्रोत जेणे. अ० अना श्रवण प्राणातिपातादिक कर्म प्रवेश द्वार रूप राल्या ते आश्रय रहित. ते जेहवो शुद्ध धर्म कहे ते धर्म केहवो छै. प० पूतिपूर्ण सर्ष व्रति रूप. म० निरुपम. अन्य दर्शन में विषे किहाई नथी. तथा इहां कह्यो-जे आत्मा गुप्त साधु इज शुद्ध धर्म नों परुपणहार छ । जाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ८ बोल सम्पूर्ण तथा सूर्य प्रज्ञप्ति में कह्यो–ते पाठ लिखिये है। सद्धाद्विइ उट्ठाणुच्छाह कम्म बल बीरिए पुरिस कारेहिं । जो सिक्खि उवसंतो अभायणे पविखवेजाहिं ॥३॥
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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