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________________ भ्रम विध्वंसनम् । अवधि ज्ञान रहित कियो छै। ते अवधि ज्ञान रहित ने असन्नी भूत कह्यो। पिण असन्नी रो भेद न पावे, तिम नेरइया ने असन्नी भूत कह्या। पिण असन्नी रो भेद न पाये। ए नेरइया अनें देवता ने असंज्ञी कह्या । ते संज्ञावाची छै । जे अवधि विभङ्ग रहित नेरइया नों नाम अतंज्ञी छै जिम विशिष्ट अवधि रहित मनुष्य निर्जसा पुद्गल न देखे। तेहनें पिण असन्नी भूत कह्यो। पिण निर्जस्सा पुद्गल न देखे ते सर्व मनुष्य में असन्नी नों भेद न पावे. तिम असन्नी नेरइया में असन्नी रो भेद न थी। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १ बोल सम्पूर्ण। तथा पन्नवणा पद ११ में कह्यो। ते पाठ लिखिये छ। अह भंते ! मंद कुमार वा मंद कुमारिया वा जाणति वयमाणं वुयमाणा अहमे से बुयामि अहमे से बुबामिति गोयमा ! णोइणटुं समण णत्थ सण्णिणो ॥ १० ॥ अह भंते! मंद कुमारए वा मंद कुमारियावा जाणति आहारं आहारे माणे अहमेसे आहार माहरेमि अहमेसे आहार माहरे मिति. गोयमा ! णो इण8 समटुं णणत्य सरिणागणी ॥११॥ अह भंते मंद कुमारए वा मंद कुमा. रिया वा जाति अयं में अम्मा पियरो गोयमा ! यो इणट्रे सम8 गणात्थ सरिणगणो ॥१२॥ ( पन्नवणा पद ) अथ भ : ह भावन् ! म: मंद कुमार ते न्हानी वालक. अथवा मन्द कुमारिका त न्हानी वालिका बोलता यका इम जाग. अ. हूँ एहवी. वः बोल छ. गो. हे गौतम : णां एहयो अर्थ.
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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