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________________ अथ जीवभेदाधिकारः। केतला एक अज्ञानी, भवन पति वाणव्यन्तर में अनें प्रथम नरक में जीव रा ३ भेद कहे सन्नी ( संज्ञी ) रो अपर्याप्त १ पर्याप्त २ अनें असन्नी पंचेन्द्रिय रो अपर्याप्तो ११ मो भेद. ३, ए तीन भेद कहे। वली सूत्र रो नाम लेवी कहे देवतामें सन्नी पिण कह्या, असन्नी पिण कह्या। ते माटे देवता ने असन्ना रोइ ११ मों भेद पावे। इम कहे तेहनों उत्तर--ए मारकी देवता में असन्नी मरी उपजे ते अपर्याप्त पणे विभंग अज्ञान न पाये, तेतला काल मात्र ते नेरइया नों असन्नी नाम छै। अनें विभङ्ग तथा अवधिज्ञान पावे तेहनो सन्नी नाम छै । ए तो संज्ञा आश्री सन्नी, असन्नी. कह्या। पिण जीव रा भेद आश्री न थी कह्या। ए अवधि. विभङ्ग दोनुं रहित नेरइया नों नाम तो असन्नी छै। पिण जीव रो भेद ११ मौ न थी। जीव रो भेद तो १३ मो छै। जिम पन्नवणा पद १५ उ० १ विशिष्ट अवधि ज्ञान रहित मनुष्य ने असन्नी भूत कह्या छै। ते पाठ लिखिये छ। मणस्लाणं भंते ! ते नि जरा पोग्गले किं जाणंति एण पासंति आहारंति उदाहु ण जाणंति ण पासतिणं आहारेति गोयमा ! अत्ोगतियाणं जाणंति पासंति आहारति अत्ोगतिया ण जाणंति ण पासंति आहारति सेकेणगां भंते ! एवं बुच्चइ अत्थेगलिया जाणंति पासंति आहारति अत्भेगतिया ण जाणंति ण पासंति ण आहारेति गोपमा ! मणुस्सा दुविहा परणत्ता तं जहा–सणिण भूयाय. असरिण भूयाय. तत्थणं जे ते असगिण भूयाय ते ण जाणंति ण पासंति आहारंति,
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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