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________________ ( द ) ६ बोल पृष्ठ २०६ से २०८ तक । कार्त्तिक सेठ संथारो कियो तेहने आलोइय पाठ कह्यो ( भ० श० १८ उ० ३ ) बोल पृष्ठ २०८ से २१३ तक । १० कषाय कुशील नियण्ठारा वर्णन ( भग० श० २५ उ० ६ ) ११ बोल पृष्ठ २१३ से २१६ तक । पुलाक वक्लुस पड़िसेवणादि रो वर्णन. संबुडा संबुडरो वर्णन ( भ० श० १६ उ० ६ ) १२ बोल पृष्ठ २१६ से २१७ तक । अनुत्तर विमान ना देवता उदीर्ण मोह न थी ( भ० श० ५ उ०४ ) पृष्ठ २१७ २१८ तक । १३ बोल से हाथी - कुथुआ रे अब्रत नी क्रिया वरोवर कही ( भग० श० ७ उ० ८ ) १४ बोल पृष्ठ २१८ से २१६ तक । सर्ब भवी जीव मोक्ष जास्ये ( भ० श० १२ उ०२ ) १५ बोल पृष्ठ २१६ से २२२ तक । पुग्दलास्तिकाय में ८ स्पर्श । अङ्ग अनुक्रम ( भ० श० १२ उ०५ ) ( उपा० अ० १ ) इति जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने प्रायश्चित्ताऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता । गोशालाऽधिकारः । १ बोल पृष्ठ २२३ से २२५ तक । गोशाला नी दीक्षा ( भग० श० १५ )
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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