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________________ आश्रवाऽधिकारः। ३०६ नियस परिणामो निस्संसो अजिइंदिनो। एय जोग समाउत्तो किण्ह लेस्सं तु परिणमे ॥२२॥ (उत्तराध्ययन प्र०३४ गा०२१-२२) कृष्ण लेश्या ना लक्षण कहे छै. पं०५ श्राश्रव नों ५० सेवण हार. ति० तीन मन वचन कायाई करी. अ० अगुप्तो मोकलो, ६ काय में विषे अव्रतो घात नों करणहार. होय. ति तीव्र पणे. अ० प्रारम्भ ने. ५० परिणामे करी सहित होई. खु० सर्व जीव ने अहितकारी. सा. जीव घात करबा ने विषे साहसिक मनुष्य ॥२१॥ तिः इह लोक परलोक ना दुःख नी शङ्का रहित. ५० परिणाम छ जेहनों नि० जीव हणता सूग रहित. अ० अणजीता इन्द्रिय जेहने. ए० ए पूर्व कह्या ते. जो योग मन वचन काया ना तणे पाप व्यापार करी. स० सहित थको. कि० कृष्ण लेश्या ना परिणामे करी. परिणामे. ते कृष्ण लेश्या ना पुद्गल रूप द्रव्य जेहने संयुक्त करी जिम स्फटिक जेहवा द्रव्य नों संयुक्त हुई लेहचे रूपे भजे. अथ इहां ५ आश्रव में कृष्ण लेश्या ना लक्षण कह्या-ते माटे जे कृष्ण लेश्या अरूपी तेहना लक्षण ५ आश्रव ते पिण अरूपी छै । तथा वली “छसु अविरओ” कहितां ६ काय हणवा ना अव्रत ते पिण कृष्ण लेश्या ना लक्षण कह्या. ते भणी अव्रत आश्रय ते पिण अरूपी छै। ए ५ आश्रय भाव कृष्ण लेश्या ना लक्षण टीकाकार पिण कह्या छै ते अवचूरी लिखिये छै। ___तेन पञ्चाश्रव प्रवृत्तत्वादीनां भावकृष्ण लेश्यायाः सनायोपदर्शना दासां लक्षण मुक्तं योहि यत्सद्भाव एवस्यात स तस्य लक्षणम्" अथ इहां अपचूरी में कह्यो-पाँच आश्रव प्रवृत्त ए आदि देई ने कह्या ते भाव लेश्या ना लक्षण छै। भगवतीमें ६ भाव लेश्या ने अरूपी कही अनें इहाँ भाव कृष्ण लेश्या ना लक्षण ५ आश्रव कह्या ते माटे आश्रव पिण अरूपी छै। भाव लेश्या भरूगी तो तेहना लक्षण रूपी किम हुवे। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति २ बोल सम्पूर्ण ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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